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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन ४६ सामर्थ्ययोग - आत्महित के लिए शास्त्रों में योग के जिन-जिन उत्तम अनुष्ठानों की चर्चा है, उनका अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार मोक्ष-प्राप्ति के लिए पालन करना सामर्थ्ययोग है।११७ इस योग को मोक्ष का साक्षात् कारण माना गया है,क्योंकि यह प्रातिभ ज्ञान से युक्त तथा सर्वज्ञता की प्राप्ति करानेवाला है। इसमें साधक का अनुभव अनिर्वचनीय स्थिति में होता है।११८ सामर्थ्ययोग के दो भेद'१९ किये गये हैं (क) धर्मसंन्यास योग तथा (ख) योगसंन्यास योग जिस योग में रागादि से उत्पन्न क्षमा, मार्दव, आर्जव आदि भाव होते हैं तथा व्रतों का पालन करते समय कभी जीव उन्नत अवस्था और कभी अवनत अवस्था में होता है, उसको धर्मसंन्यास योग कहा जाता है। योगसंन्यास की अवस्था को शैलेशीकरण के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। धर्मसंन्यासी योगी आत्मविकास करते-करते क्रमश: योगसंन्यास की अवस्था तक पहुँचता है।१२० इस अवस्था में जीव के ऊपर-नीचे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि तब तक योगी सम्पूर्ण मन, वचन एवं काय के व्यापारों का पूर्णत: निरोध कर लिया होता है और योगी की आत्मा मुक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित करती है। योग के सभी प्रकारों में से इसे सर्वोत्तम योग कहा गया है।२२१ जैन परम्परा में कुण्डलिनी योग योग के प्रकारों में एक कुण्डलिनी योग भी है जिसकी चर्चा वैदिक ग्रंथों में तो मिलती है, परन्तु जहाँ तक जैनागमों का सम्बन्ध है, कुण्डलिनी की चर्चा न आगम ग्रन्थों में प्राप्त होती है, न परवर्ती योग-विषयक साहित्यों में ही । कुण्डलिनी योग द्वारा योगी अपने आत्मस्वरूप की प्राप्ति करता है। तात्पर्य है कि योगी कण्डलिनी के नवचक्रों के आधार पर जप एवं मन्त्रों का चिन्तन करते-करते मन को एकाग्र करता है तथा आत्मदर्शन करने में समर्थ होता है। आधुनिक जैन साहित्य नमस्कार स्वाध्याय २२ में कण्डलिनी के नवचक्रों का वर्णन आया है जिसे वैदिक परम्परा से ग्रहण किया गया है ऐसा माना जा सकता है १. गुदा के मध्य भाग में आधार चक्र। २. लिंग मूल के पास स्वाधिष्ठान चक्र। ३. नाभि के पास मणिपुर चक्र। ४. हृदय के पास अनाहत चक्र। ५. कण्ठ के पास विशुद्ध चक्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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