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योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध
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तप की परिभाषा
तप की आराधना गृहस्थ एवं साधु दोनों के लिए आवश्यक है। अन्तर इतना है कि गृहस्थ तपस्वी की भाँति तप की कठोर आराधना नहीं कर सकता, क्योंकि व्यावहारिक कर्तव्यों का सम्पूर्ण उच्छेद कर देना उसके लिए सम्भव नहीं है। तप का अर्थ ही होता है कर्मफल या संचित कर्म को जलाना या नष्ट करना तथा ऐसी साधना के लिए सर्वांशत: तपस्वी अथवा साधक ही उचित ठहरते हैं। जैन योग-साधना में जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष-प्राप्ति है और इसके लिए तप को विशेष साधन के रूप में माना गया है। यही कारण है कि तप का विशेष वर्णन जैनागमों में मिलता है। तप को परिभाषित करते हुए कहा गया है जो आठ प्रकार के कर्मों को तपाता है, उसे भस्मसात कर डालने में समर्थ हो उसे तप कहते हैं।७३
जैनागमों के प्रसिद्ध चूर्णिकार जिनदासगणी महत्तर ने भी तप की व्युत्पत्तिजन्य परिभाषा बताते हुए कहा है - जिस साधना आराधना से, उपासना से पाप कर्म तप्त हो जाते हैं, उसे तप कहते हैं।७४ आचार्य अभयदेव सूरि ने तप का निरुक्त (शाब्दिक) अर्थ करते हुए स्थानांगवृत्ति में कहा है - जिस साधना के द्वारा शरीर के रस, रक्त, मांस, हड्डियाँ, मज्जा, शुक्र आदि तप जाते हैं, सूख जाते हैं, वह तप है तथा जिसके द्वारा अशुभ कर्म जल जाते हैं वह तप है।७५ तप की भावप्रधान परिभाषा करते हुए उत्तराध्ययन में कहा गया है- त्याग करने से इच्छाओं का निरोध हो जाता है। ६ त्याग से इच्छा, आशा, तृष्णा शान्त हो जाती है। वास्तव में तप की यह भावात्मक और व्यापक परिभाषा है। इस परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि तप मात्र देह-दमन तक सीमित नहीं है बल्कि उसका अकुंश इच्छा और वासना पर भी रहता है जिससे आत्मा परिशुद्ध होती है। अत: तप वह विधि है जिससे जीव बद्ध कर्मों का क्षय करके व्यवदान अर्थात् विशुद्धि को प्राप्त होता है। इतना ही नहीं तप का सम्बन्ध संयम से भी है। शास्त्रों में जहाँ-जहाँ संयम का वर्णन आया है, वहाँ-वहाँ तप का वर्णन भी अवश्य देखने को मिलता है। जिस प्रकार हवा के बिना अग्नि प्रज्वलित नहीं हो सकती है, उसी प्रकार संयम के बिना तप की साधना भी नहीं चल सकती है। व्यवहार में संयम और तप कहने को तो दो शब्द हैं, परन्तु दोनों के भाव एक ही हैं-इन्द्रिय संयम, मन संयम, वचन संयम आदि। आचार्य सोमदेव सरि ने कहा है- पाँच इन्द्रिय और मन को वश में करना, इंन पर संयम रखना, इच्छाओं पर अंकुश लगाना आदि का नाम तप है।७९ तप के प्रकार
तप की विधियाँ एवं प्रक्रियाएं अलग-अलग होने के कारण इसके अलग
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