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________________ योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध छेदोपस्थापनीय चारित्र (३) परिहारविशुद्धि चारित्र (४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्र और (५) यथाख्यात चारित्र।६७ सामायिक चारित्र- समभाव में स्थित रहने के लिए समस्त अशुद्ध प्रवृत्तियों का त्याग करना सामायिक चारित्र है। इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि वासनाओं, कषायों एवं राग-द्वेष की वृत्तियों से निवृत्ति तथा समभाव की प्राप्ति सामायिक चारित्र है। इसके भी दो प्रकार हैं - (क) इत्वरिक- जो थोड़े समय के लिए दीक्षा ग्रहण करता है और (ख) यावत्कथित- जो सम्पूर्ण जीवन के लिए दीक्षा ग्रहण करता है। छेदोपस्थापनीय चारित्र- प्रथम दीक्षा के बाद विशिष्ट श्रुत का अभ्यास कर लेने पर विशेष शुद्धि के लिए जीवनपर्यन्त पुन: जो दीक्षा ली जाती है अर्थात् प्रथम दीक्षा में दोषापत्ति आने से उसका छेद करके फिर नये सिरे से जो दीक्षा का आरोपण किया जाता है, उसे छेदोपस्थापनीय चारित्र कहते हैं।६८ परिहारविशुद्धि चारित्र- जिसमें विशिष्ट प्रकार के तप-प्रधान आचार का पालन किया जाता है उसे परिहारविशुद्धि चारित्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम इस प्रकार कह सकते हैं कि जिस आचरण से कर्मों का अथवा दोषों का परिहार होकर निर्जरा के द्वारा विशुद्धि हो वह परिहारविशुद्धि चारित्र है। सूक्ष्मसम्पराय चारित्र- जिस अवस्था में क्रोध आदि कषायों का उदय नहीं होता, केवल लोभ का अंश अति सूक्ष्मता में रह जाता है उस अवस्था को सूक्ष्मसम्पराय चारित्र कहते हैं।६९ यथाख्यात चारित्र- जिस अवस्था में किसी भी कषाय का बिल्कुल उदय नहीं होता, उस अवस्था को यथाख्यात् अर्थात् वीतराग चारित्र कहते हैं। चारित्र के उपर्युक्त सभी प्रकार के भेद-विभेद आदि आत्मशोधन की प्रक्रियाएं हैं। जो प्रक्रिया जितनी ही अधिक मात्रा में आत्मा को राग, द्वेष और मोह से निर्मल बनाती है, वह उतनी ही अधिक मात्रा में चारित्र के उज्ज्वलतम पक्ष को प्रस्तुत करती है। सम्यग्तप जैन परम्परा में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्-चारित्र के साथ सम्यग्तप का भी उल्लेख आया है, जिसका आगे चलकर सम्यक्-चारित्र में अन्तर्भाव हो गया है। लेकिन प्राचीन युग में जैन परम्परा में सम्यग्तप का स्वतंत्र स्थान रहा है। भारतीय धर्मों में ही नहीं, अपितु विश्व के प्रत्येक धर्म में, यहाँ तक कि धर्म को नहीं माननेवाले विद्वानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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