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________________ योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध २५ मुनियों में गुरुबुद्धि और जिनप्रणीत धर्म में सिद्धान्तबुद्धि रखना व्यवहार सम्यक्त्व कहलाता है। सम्यक्त्व के पाँच अंग सम्यक्त्व की साधना के लिए जैन ग्रंथों में सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा तथा आस्तिक्य इन पाँच अंगों का विधान किया गया है।२८ ये हमारे व्यावहारिक जीवन में भी इन्हीं रूपों में अभिव्यक्त होते हैं। जब तक साधक इन पाँच अंगों को नहीं अंगीकार कर लेता तब तक वह यथार्थ या सत्य की आराधना में समर्थ नहीं हो सकता है। सम-'सम' शब्द के दो अर्थ देखे जाते हैं- (१) समानुभूति या तुल्यता बोध यानी सभी प्राणियों को अपने समान समझना। (२) चित्तवृत्ति का समभाव यानी सुखदुःख, हानि-लाभ एवं अनुकूल-प्रतिकूल दोनों स्थितियों में चित्त को समभाव रखना। यदि सामान्य भाषा में कहें तो क्रोधादि कषायों को शान्त करना ही सम सम्यक्त्व है। संवेग- संवेग अर्थात् सम्यक्-गति। संवेग का प्रतिफल बताते हुए उत्तराध्ययन में कहा गया है- संवेग से मिथ्यात्व की विशुद्धि होकर यथार्थ दर्शन की उपलब्धि (आराधना) होती है।२९ डॉ० सागरमल जैन के शब्दों में सामान्य अर्थ में संवेग शब्द अनुभूति के लिए प्रयुक्त होता है। यहाँ इसका तात्पर्य होगा स्वानुभूति, आत्मानुभूति अथवा आत्मा के आनन्दमय स्वरूप की अनुभूति।३" यह मोक्ष-प्राप्ति की कामना को जन्म देता है। निर्वेद- सांसारिक क्रियाओं के प्रति उदासीन भाव रखना निवेद है। इसके अभाव में साधना के मार्ग पर चलना असंभव है। यह विषय भोगों के प्रति अनासक्ति पैदा करता है। अनुकम्पा- दूसरे व्यक्ति के दुःख से पीड़ित होने पर तदनुकूल अनुभूति का उत्पन्न होना अनुकम्पा है। इसे हम दूसरी भाषा में यदि कहना चाहें तो कह सकते हैं कि दूसरे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझना अर्थात् मैत्री भावना रखना ही अनुकम्पा है। आस्तिक्य- जैन विचारणा के अनुसार पुण्य-पाप, पुनर्जन्म, कर्म-सिद्धान्त और आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करना सम्यक् आस्तिक्य है। सम्यक्त्व प्राप्ति के बाधक तत्त्व सम्यक्त्व प्राप्ति में तीन बाधक तत्त्व माने गये हैं जिन्हें तीन दूषण या अतिचार भी कहते हैं। दूषण या अतिचार वह दोष है जिससे व्रत भंग तो नहीं होता, परन्तु सत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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