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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन या यथार्थता का विशुद्ध स्वरूप उससे प्रभावित होता है। वे तीन दोष निम्न हैं (१) चल- चल दोष से तात्पर्य साधक के हृदय से है, जो सम्यक्त्व के प्रति दृढ़ रहता है; परन्तु कभी-कभी क्षणिक रूप से वह बाह्य आवेगों से प्रभावित हो जाता है। (२) मल- मल वे दोष हैं जिनसे यथार्थ दृष्टिकोण की निर्मलता प्रभावित होती हैं। ये पाँच हैं- (क) शंका- वीतराय या अर्हत् के कथनों पर शंका करना, उसकी यथार्थता के प्रति संदेहात्मक दृष्टिकोण रखना शंका है। (ख) आकांक्षा- नैतिक एवं धार्मिक आचरण के फल की कामना करना आकांक्षा है। (ग) विचिकित्सा- सदाचरण का प्रतिफल मिलेगा या नहीं ऐसा संशय करना विचिकित्सा है। जैन मतानुसार नैतिक कर्मों की फलाकांक्षा एवं फल-संशय दोनों को ही अनुचित माना गया है।३२ (घ) मिथ्याद्रष्टियों की प्रशंसा- जिन लोगों की दृष्टियाँ सम्यक नहीं हैं उनकी प्रशंसा करना। (ङ) मिथ्यादृष्टियों का अति परिचय- साधना एवं नैतिक जीवन के प्रति जिनका दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है, ऐसे व्यक्तियों से घनिष्ठता रखना उचित नहीं, क्योंकि संगति का असर व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक पड़ता है। (३) अगाढ़- अगाढ़ दोष वह है जिसमें अस्थिरता रहती है। जिस प्रकार हिलते हुए दर्पण में रूप अस्थिर रहता है, उसी प्रकार अस्थिर चित्त में सत्य प्रकट होने पर सत्य भी अस्थिर रहता है। सम्यक्त्व का दशविध वर्गीकरण उत्तराध्ययन में३ सम्यक्त्व की उत्पत्ति के आधार पर दस भेद किए गये हैं (१) निसर्ग (स्वभाव) रुचि- जो यथार्थ (सम्यक्) दृष्टिकोण व्यक्ति में स्वत: ही उत्पन्न हो जाता है वह निसर्ग रुचि सम्यक्त्व कहलाता है। (२) उपदेश रुचि- वीतरागी उपदेश को सुनकर जो यथार्थ दृष्टिकोण या श्रद्धान् उत्पन्न होता है वह उपदेश रुचि सम्यक्त्व कहलाता है। (३) आज्ञा रुचि- वीतराग के नैतिक आदेशों को मानकर जो यथार्थ दृष्टिकोण उत्पन्न होता है उसे आज्ञा रुचि कहते हैं। (४) सूत्र रुचि- अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर जो यथार्थ दृष्टिकोण उत्पन्न होता है उसे सूत्र रुचि कहते हैं। (५) बीज रुचि- यथार्थता के स्वल्प बोध को स्वचिन्तन से विकसित करना बीज रुचि सम्यक्त्व है। (६) अभिगम रुचि- अंग साहित्य एवं अन्य ग्रंथों का अर्थ एवं व्याख्या सहित अध्ययन करने से जो तत्त्वबोध एवं तत्त्वश्रद्धा उत्पन्न होती है वह अभिगम रुचि सम्यक्त्व है। (७) विस्तार रुचि- वस्तुतत्त्व (षद्रव्यों) के अनेक पक्षों का विभिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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