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________________ २२ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन परमाणुओं का बन्ध होता है, योग है।१२ आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार सभी प्रकार के विपरीत अभिनिवेशों को त्यागकर जिनेन्द्रदेव कथित तत्त्वों से स्वयं को भावित करते हुए निज-स्वभाव में स्थित होना योग है।१३ आचार्य पूज्यपाद ने समाधितंत्र में कहा है - मैं जिस रूप को देखता हूँ, वह सर्व प्रकार से अज्ञ है, जो ज्ञाता है वह अदृश्य है; अत: मैं किससे बोलूँ। इस प्रकार बाह्य वचनवृत्ति को त्यागकर अन्तर्वृत्ति का भी सम्पूर्ण रूप से त्याग करना चाहिए। यह संक्षेप में परमात्मा को प्रकाशित करनेवाला योग है।१४ आचार्य हरिभद्र जिन्हें जैन परम्परा में योग विषयक अवधारणा को परिमार्जित करने का श्रेय जाता है, के अनुसार - 'मोक्ष-तत्त्व के साथ संयोग करानेवाला धर्म-व्यापार योग कहलाता है।' १५ योगबिन्दु में उन्होंने कहा है - धार्मिक क्रिया-कलाप, आध्यात्मिक भावना, समता का विकास, मनोविकारों का क्षय, मन, वचन, काय को सम्पादित करनेवाले धार्मिक क्रिया-कलाप ही श्रेष्ठ योग हैं।१६ सामान्य तौर पर कहा जा सकता है कि आचार्य ने आत्मा की विशुद्धि के सभी साधनों को योग कहा है। इसी प्रकार आचार्य हेमचन्द्र ने योग को मोक्ष का कारण मानते हुए उसे ज्ञान, दर्शन और चारित्रात्मक कहा है।१७ इस प्रकार जैन परम्परा में योग का अर्थ चित्त की वृत्तियों का निरोध एवं मोक्षप्रापक धर्म-व्यापार है। यहाँ वही धर्म-व्यापार मान्य है जो मोक्ष के लिए अनुकूल मार्ग निर्धारित करता है। अत: कहा जा सकता है कि योग समस्त स्वाभाविक आत्मशक्तियों की पूर्ण विकास-क्रिया अर्थात् आत्मोन्मुखी एक चेष्टा है। ___ योग के प्रकार जैन साहित्य में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र को मोक्षमार्ग के रूप में स्वीकार किया गया है।८ यह त्रिविध योग के नाम से जाना जाता है। परन्तु प्राचीन आगम उत्तराध्ययना और दर्शनपाहुडर में चतुर्विध मार्ग का भी वर्णन मिलता है। योगसाधना के उस चौथे मार्ग का नाम है- सम्यक-तप। लेकिन प्राचीन काल से जैन परम्परा में सम्यक्-तप का स्वतंत्र अस्तित्व रहा है। अत: यहाँ उसका स्वतंत्र रूप में ही वर्णन करना उचित है। सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन सामान्यत: सात तत्त्वों का या विशेष रूप से आत्म-अनात्म का यथार्थ बोध है। या,कह सकते हैं कि सात तत्त्वों२१ के प्रति श्रद्धा का होना सम्यग्दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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