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________________ बन्धन एवं मोक्ष रूपी बीज का वपन होता है। (४) नामरूप - विज्ञान के प्रत्यय से नाम और रूप की निष्पत्ति होती है । बौद्ध दर्शन में समस्त जगत व्यापार (बाह्य और आध्यात्मिक) को पाँच स्कन्धों में विभक्त किया गया है- रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान। जिनमें प्रथम स्कन्ध रूप है और बाद के चार स्कन्ध नाम के अन्तर्गत आते हैं । ९६ जगत की जितनी भी स्थूल चीजें हैं सभी रूप हैं और जितने भी सूक्ष्म मानसिक धर्म हैं वे नाम हैं। दीघनिकाय के महासतिपट्ठानसुत्त में कहा गया है कि जगत में जितने भी रूप हैं, चाहे वे भूतकाल के हों चाहें वर्तमानकाल के हों या चाहे भविष्य काल के हों, अपने अंदर के हों या बाहर के, स्थूल हों या सूक्ष्म, बुरे हों या भले, दूर हों या समीप, वे सब रूप उपादान के अन्तर्गत आते हैं। इसी प्रकार वेदना-उपादान-स्कन्ध, संज्ञा - उपादान स्कन्ध, संस्कार - उपादान स्कन्ध और विज्ञान- उपादानस्कन्ध के अन्तर्गत जो कुछ भी आते हैं वे सब नाम से अभिधेय हैं। " रूप भौतिक है और नाम चेतन विज्ञान सहित । नामरूप से ही जन्म लेना, बूढ़ा होना, मरनाच्युत होना आदि होता है। ३०१ (५) षडायतन-नामरूप के प्रत्यय से षडायतन उत्पन्न होते हैं। षडायतन से तात्पर्य है- पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ तथा मन । गर्भस्थ शरीर और मन यदि न हो तो षडायतन नहीं होगा। गर्भावस्था, जो शरीर का रूप होता है, वह और मन न हो जिसे नामरूप कहते हैं तो षडायतन नहीं हो सकता। तात्पर्य है कि वेदना, संज्ञा, संस्कार (नाम) आदि नहीं होते, यदि चार महाभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु) और इनसे निर्मित विकार (रूप) नहीं होते तो इन्द्रियों की अनुभूतियाँ भी कहाँ से आतीं। (६) स्पर्श - षडायतन से स्पर्श की उत्पत्ति होती है । इन्द्रिय और विषय का संयोग ही स्पर्श है। चक्षु संस्पर्श, श्रोत्र संस्पर्श, घ्राण संस्पर्श, जिह्वा संस्पर्श, काय संस्पर्श एवं मन संस्पर्श- ये छ: स्पर्श हैं। ये सभी कुशल या अकुशल कर्म के विपाक होते हैं। Jain Education International (७) वेदना - स्पर्श वेदना का कारण है । इन्द्रियों के होने पर उनका अपने-अपने विषयों से सम्पर्क होता है और वह सम्पर्क हमारे मन पर प्रभाव डालता है । इन्द्रिय और विषय के संयोग से उत्पन्न मन पर पड़नेवाला प्रथम प्रभाव वेदना कहलाता है। नाक और उसके विषय के स्पर्श से तदनुकूल वेदना, कान और उसके विषय के स्पर्श से तद्नुकूल वेदना, ऐसे ही आँख, जिह्वा, त्वचा और मन से उत्पन्न विभिन्न वेदनाएँ हैं । वेदना चार प्रकार की मानी गयी हैं- सुखरूप वेदना, दु:खरूप वेदना, सुख-दुःखरूप वेदना तथा असुख - अदुःख रूप वेदना । चेतना से प्रत्येक प्रकार की वेदना अनिवार्य रूप से सम्बद्ध For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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