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________________ २८६ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन सकर्मात्मा अशुभ कर्म का बन्धन करता है जिससे ज्ञान आवरित होता है। ज्ञान को आवृत करके उसके प्रकाश को घटा देनेवाली प्रकृति ज्ञानावरणीय कर्म कहलाती है।२९ दूसरी भाषा में इस प्रकार कह सकते हैं कि जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढ़क देता है, उसी प्रकार जो कर्म-वर्गणाएँ आत्मा की ज्ञान शक्ति को ढंक देती हैं और सहज ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनती हैं, वे ज्ञानावरण कर्म कहलाती हैं। ज्ञानावरणीय कर्म का बन्धन क्यों होता है? इसके निम्नलिखित कारण बताये गये हैं १. तत्प्रदोष-तत्त्वज्ञान के निरूपण के समय मन में तत्त्वज्ञान के प्रति, उसके वक्ता के प्रति अथवा उसके साधनों के प्रति द्वेष रखना तत्प्रदोष है। २. ज्ञान निह्नव-विषय की जानकारी होते हुए भी किसी के पूछे जाने पर यह कहना कि मैं नहीं जानता अथवा मेरे पास वह वस्तु है ही नहीं, ज्ञान निह्रव है। । ३. ज्ञान मत्सर्य-ज्ञान के अधिकारी ग्राहक के मिलने पर भी अभ्यस्त ज्ञान को न देने की कलुषित भावना ज्ञान मत्सर्य है। ४. ज्ञानान्तराय- ज्ञान की प्राप्ति में बाधक बनना या कलुषित भावना से ज्ञान प्राप्ति में किसी को बाधा पहुँचाना ज्ञानान्तराय है। ५. ज्ञानासादन-ज्ञानी पुरुष ज्ञान दे रहा हो तब वाणी अथवा शरीर से उसका विरोध करना ज्ञानासादन है। ६. उपघात-किसी के कहे हुए सत्य वचन को विपरीत मति के द्वारा असत्य कहकर दोष निकालना उपघात है। ज्ञानावरणीय कर्म द्वारा आत्मा की आवरित ज्ञान शक्तियाँ १. मतिज्ञानावरण- इसमें ऐन्द्रिक एवं मानसिक ज्ञान क्षमता का अभाव होता है। २. श्रुतज्ञानावरण - इसके कारण बौद्धिक एवं आगम ज्ञान की उपलब्धि नहीं हो पाती है। ३. अवधिज्ञानावरण- इस आवरण के कारण अतीन्द्रियज्ञान-क्षमता का अभाव रहता है। ___ ४. मनः पर्यायज्ञानावरण - इसमें दूसरे की मानसिक अवस्थाओं को प्राप्त करने की शक्ति का अभाव होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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