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________________ बन्धन एवं मोक्ष २८७ ५. केवल ज्ञानावरण - इसके रहने पर पूर्ण ज्ञान प्राप्ति की शक्ति का अभाव रहता है। दर्शनावरण कर्म जिसके द्वारा दर्शन अर्थात् सामान्य बोध का आवरण हो उसे दर्शनावरण कर्म कहते हैं। ज्ञान से पहले होनेवाला वस्तु तत्त्व का निर्विशेष बोध, जिसमें सत्ता के अतिरिक्त किसी विशेष गुण धर्म की प्राप्ति नहीं होती, दर्शन कहलाता है। दर्शनावरण में आत्मा के इन्हीं गुणों का आवरण होता है। जिस प्रकार द्वार पर किसी द्वारपाल का होना राजा के दर्शन में बाधक होता है, ठीक उसी प्रकार जो कर्म-वर्गणाएँ आत्मा की दर्शन-शक्ति में बाधक हैं वे दर्शनावरणीय कहलाती हैं। दर्शनावरणीय कर्म-बन्धन के कारण निम्नलिखित हैं (क) सम्यक्-दृष्टि की निन्दा करना, (ख) असत् मान्यताओं का प्रतिपादन करना, (ग) शुद्ध दृष्टिकोण की उपलब्धि में बाधक बनना, (घ) सम्यक्-दृष्टि पर द्वेष करना, (ङ) सम्यक्-दृष्टि का समुचित विनय एवं सम्मान नहीं करना, (च) सम्यक-दृष्टि के साथ मिथ्याग्रह सहित विवाद करना आदि।३२ ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म-बन्ध के कारण परस्पर एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। दर्शनावरण कर्म द्वारा आत्मा के नौ दर्शन गुण आवरित होते हैं- चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधि दर्शनावरण, केवल दर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला एवं स्त्यानगृद्धि। दर्शनावरणकर्म द्वारा आत्मा के नौ दर्शन गुणों का आवरित होना। १. चक्षु दर्शनावरण - इस आवरण द्वारा नेत्र शक्ति का आवरण होता है। २. अचक्षु दर्शनावरण - इसमें नेत्र के अतिरिक्त शेष इन्द्रियों की अनुभव शक्ति का आवरण होता है। ३. अवधि दर्शनावरण- सीमित अतीन्द्रिय दर्शन की उपलब्धि का आवरण होता है। ४. केवल दर्शनावरण- पूर्ण दर्शन की उपलब्धि पर आवरण पड़ता है। ५. निद्रा- सामान्य निद्रा का होना। ६. निद्रानिद्रा- इसमें गहरी निद्रा पर आवरण पड़ता है। ७. प्रचला- बैठे-बैठे आनेवाली निद्रा प्रचला निद्रा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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