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________________ बन्धन एवं मोक्ष आलस्य से शास्त्रोक्त विधि का अनादर करना अनवकांक्ष क्रिया है । १. आरम्भ क्रियाकाटने-पीटने और घात करने में स्वयं रत रहना और अन्य लोगों में वैसी प्रवृत्ति देखकर प्रसन्न होना आरम्भ क्रिया है । २. पारिग्रहिकी क्रिया-परिग्रह का नाश न होने के लिए की जानेवाली क्रिया पारिग्रहिकी क्रिया है । ३. माया क्रिया- ज्ञान, दर्शन आदि विषय में दूसरों को ठगना माया क्रिया है । ४. मिथ्यादर्शन क्रिया- मिथ्यादृष्टि के अनुकूल प्रवृत्ति करनेकराने में प्रशंसा द्वारा मिथ्यात्व को दृढ़ करना मिथ्यादर्शन क्रिया है । ५. अप्रत्याख्यान क्रिया-संयम घातिकर्म के प्रभाव के कारण पापव्यापार से निवृत्त न होना अप्रत्याख्यान क्रिया है २७ ॥ इस प्रकार साम्परायिक आस्रव की उपर्युक्त क्रियाएं कषाय प्रेरित होने से बन्धन की कारण हैं। यद्यपि देखा जाय तो उक्त सभी क्रियाओं की बन्धता योग और कषाय पर अवलम्बित है। योग और कषाय ही हैं जो दूसरे के ज्ञान में बाधा पहुँचाना, दूसरे को कष्ट पहुँचाना, दूसरे की निन्दा करना आदि, जिस-जिस प्रकार के ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय आदि क्रियाओं में संलग्न होती हैं, उस उस प्रकार से उन उन कर्मों का आस्रव और बन्ध कराती हैं। इसमें जो क्रिया प्रधान होती है उससे उस कर्म का बन्ध विशेष रूप से होता है, शेष कर्मों के साथ नहीं । आठ कर्म और बन्धन जैन दर्शन में आठ प्रकार के कर्म स्वीकार किये गये हैं, जो कर्म-परमाणु के रूप में सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। ये कर्म-परमाणु ही आत्मा के विभिन्न गुणों का घात करते हैं। उत्तराध्यययन" के अनुसार कर्म के आठ प्रकार (१) ज्ञानावरणीय, (२) दर्शनावरणीय, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयुष्य, (६) नाम, (७) गोत्र तथा (८) अन्तराय। २८५ इनमें ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय ये चार घाती प्रकृतियाँ हैं, क्योंकि ये आत्मा के चार मूल गुणों (ज्ञान, दर्शन, आनन्द और वीर्य ) का घात करती हैं। शेष चार अघाती प्रकृतियाँ हैं जो आत्मा के किसी भी गुण का घात नहीं करतीं । कर्म आत्मा को ऐसा रूप प्रदान करता है जो आत्मा का निजी नहीं बल्कि पौगलिक (भौतिक) होता है। ज्ञानावरण कर्म मोह के उदय से जो व्यक्ति क्रिया करता है, वह सकर्मात्मा कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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