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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
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को शान्त करने के विभिन्न उपाय हैं, यथा- ज्ञानयुक्ति, संकल्पत्याग, भोगों से विरक्ति, वासना - त्याग७६, अहंभाव का नाश, ७७ असंग का नाश७८, कर्तृत्वभाव का त्याग, सर्वत्याग, ७९ समाधि का अभ्यास, ° लयक्रिया १ आदि ।
योग का तीसरा प्रकार है- प्राण-निरोध । प्राण-निरोध से अभिप्राय है प्राणों के स्पन्दन का रुकना । जिस प्रकार पंखे का हिलना बन्द होते ही हवा का चलना बन्द हो जाता है, उसी प्रकार प्राणों की गति रुक जाने पर मन भी शान्त हो जाता है और मन के शान्त हो जाने पर संसार का लय हो जाता है । ८२ मन शान्त करने के विभिन्न उपाय हैं, यथा- परमार्थ ज्ञान, शास्त्र, सज्जनों का संग, सांसारिक प्रवृत्तियों से मन को हटाना, इच्छित वस्तु का ध्यान, एक तत्त्व का अभ्यास, प्राणायाम, ऊर्ध्वरन्ध्र में प्राण को ले जाना आदि।
७५
- प्रकरण
उपर्युक्त तीनों प्रकारों में से किसी एक पर चलने से ही तीनों की सिद्धि हो जाती है। इन तीनों में मन को शान्त कर लेना अत्यन्त ही सरल है। जैसा कि निर्वाण-प्र में कहा गया है- प्राणों के निरोध की अपेक्षा मन को शान्त करना अथवा तत्त्व का दृढ़ अभ्यास करना अधिक सरल है। '३ अतः मन को जीत लेने से सब कुछ जीता जा सकता है । मन ही स्थूल होकर परिमित जीव का रूप धारण कर लेता है। फलतः वह दुःख का भागी बनता है। जिन कारणों से मन स्थूलता को प्राप्त कर दुःख भोगता है वह हैअविद्या। अविद्या को ही सभी दुःखों का कारण माना गया है तथा इसका विनाश सम्यग्दर्शन की प्राप्ति से होता है । सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति के बाद मन स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ता है और ब्रह्मत्व की प्राप्ति करता है।
इस प्रकार योगवासिष्ठ के अनुसार ज्ञान या योग दोनों से ब्रह्म प्राप्ति अभीष्ट है। तात्पर्य यह है कि मानव योग द्वारा अपने स्वरूप की अनुभूति करता है तथा सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति कर परमात्मा में अवस्थित हो जाता है।
पातंजल योग
वैदिक परम्परा में योग को यदि सम्यक् स्वरूप प्रदान करने का श्रेय किसी को जाता है तो वे हैं- महर्षि पतंजलि | महर्षि पतंजलि ने ही वैदिक संहिताओं और ब्राह्मणग्रन्थों तथा उपनिषदों में वर्णित यौगिक प्रक्रियाओं को परिमार्जित कर योग को नया स्वरूप प्रदान किया। योग से सम्बन्धित उनकी प्रमुख कृति है- योगसूत्र । ऐसे तो योगसूत्र पर अनेक टीकाएँ लिखी गयी हैं, किन्तु सबसे प्रामाणिक एवं प्रसिद्ध व्यासभाष्य माना जाता है। योगसूत्र चार पादों में विभक्त है। जिसके प्रथम पाद में योग के लक्षण, स्वरूप तथा
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