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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन १० निग्रह करने के साथ-साथ स्वाध्याय, शौच, सन्तोष तथा तप करके परब्रह्म में मन को आसक्त कर देना चाहिए । ५८ इस तरह नियमों के साथ-साथ यम भी पाँच की संख्या में निरूपित किये गये हैं। सकाम भाव से इनका पालन करने पर ये विशेष फल देते हैं, किन्तु निष्काम भाव से पालन करने पर विमुक्ति प्रदान करते हैं । ५९ विष्णुपुराण में जहाँ यम-नियम के पाँच-पाँच भेद बताये गये हैं वहीं भागवतपुराण में दोनों के बारह-बारह भेदों के निरूपण किये गये हैं, जो इस प्रकार हैं यम के बारह भेद " १- अहिंसा ५- ही ९ - मौन नियम के बारह भेद" २- सत्य ६- असंचय १०- स्थैर्य ३- अस्तेय ७- आस्तिक्य ११- क्षमा १ - बाह्य शौच २ - आभ्यन्तर शौच ३- जप ५ - होम ९- तीर्थाटन ६- श्रद्धा १०- परार्थ चेष्टा ७- आतिथ्य ११- संतोष Jain Education International ४- असंग ८ ब्रह्मचर्य १२- अभय भागवतपुराण के तीसरे स्कन्ध में ही आसन का निरूपण करते हुए कहा गया है कि घर से निकले हुए पुरुष को पुण्य तीर्थ के जल में स्नान कर शुद्ध एकान्त स्थल में बिछाए हुए आसन पर आसीन हो योग का अभ्यास करना चाहिए । ६ २ इसी प्रकार कुम्भक, पूरक एवं रेचक के द्वारा प्राणमार्ग को शुद्ध करना चाहिए। विष्णुपुराण एवं शिवपुराण में प्राणायाम के दो भेदों का वर्णन आया है- सगर्भ और अगर्भ। ६३ जप और ध्यान के बिना किया जानेवाला प्राणायाम अगर्भ तथा जप और ध्यान से संयुक्त किया जानेवाला प्राणायाम सगर्भ प्राणायाम कहलाता है। अगर्भ प्राणायाम से सगर्भ प्राणायाम गुना अधिक प्रभावशाली होता है, ऐसा शिवपुराण में कहा गया है। अत: योगी को सगर्भ विधि से प्राण का संयमन करना चाहिए। ६४ For Private & Personal Use Only ४- तप ८ - भगवद् दर्शन १२ - आचार्य सेवन । इसी प्रकार ध्यान के विषय में कहा गया है कि हृदय में रहनेवाले भगवान् विष्णु के उस ध्यानस्वरूप हास्य का, जिस हास्य के नीचे होठों की लालिमा के भीतर कुन्दकली-सी दन्तपंक्ति अरुण आभा प्रदान कर रही है, अर्पितमन होकर सरस भक्ति से ध्यान करना चाहिए । ६५ कहा भी गया है कि योग का उद्देश्य केवल कायाकल्प या शरीर को सृदृढ़ बनाना ही नहीं है, बल्कि उसका मुख्य उद्देश्य है भगवान् में चित्त को लगाना । ६६ भगवान् में चित्त को लगाना ही भक्तियोग है। भागवतपुराण में वर्णन भी आया है कि www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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