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ध्यान
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विपश्यना- यह भारत की एक अत्यन्त पुरातन ध्यान-विधि है। २५०० वर्ष पूर्व भगवान् गौतम बुद्ध ने इसे खोज निकाला और ४५ वर्षों तक स्वयं इसका अभ्यास किया और लोगों से भी करवाया। भगवान् बुद्ध ने इसे अपने शिष्य महाकश्यप के मन में संप्रेषित कर दिया और महाकश्यप ने आनन्द के मन में । इस प्रकार गुरु-शिष्य परम्परा के क्रम से यह ध्यान-विधि निरन्तर चलती रही। ध्यान-सम्प्रदाय में महाकश्यप और आनन्द तथा क्रमश: बोधिधर्म तक अट्ठाईस धर्माचार्यों के नाम मिलते हैं, जो इस प्रकार हैं२१९– १. महाकश्यप २. आनन्द ३. शाणवास ४. उपगुप्त ५. धृतक ६. मिच्छक ७. वसुमित्र ८. बुद्धनन्दी ९. बुद्धमित्र १०. भिक्षु पार्श्व ११. पुण्ययशस् १२. अश्वघोष १३. भिक्षुकपिमाल १४. नागार्जुन १५, काणदेव १६. आर्य राहुलक १७. संघनन्दी १८. संघयशस् १९. कुमारिल २०. जयंत २१. वसुबन्धु २२. मनुर २३. हक्लेनयशस् (हक्लेन) २४. भिक्षु सिंह २५. वाशसित २६. प्रज्ञातर २७. पुण्यमित्र २८. बोधिधर्म।
इस प्रकार बोधिधर्म अट्ठाईसवें धर्मनायक हैं । आप चीन में 'ध्यान-सम्प्रदाय' के प्रथम धर्मनायक हुए हैं।२२० समय के साथ-साथ यह ध्यान-विधि भारत के पड़ोसी देशोंबर्मा, श्रीलंका, थाईलैण्ड आदि में फैल गई । बुद्ध के परिनिर्वाण के लगभग ५०० वर्ष बाद विपश्यना भारत से लुप्त हो गई। दूसरी जगह भी इसकी शुद्धता नष्ट हो गई। केवल बर्मा में इस विधि के प्रति समर्पित आचार्यों की एक कड़ी के कारण यह अपने शुद्ध रूप में कायम रह पाई। इसी परम्परा के प्रख्यात आचार्य सियाजी ऊबा खिन विपश्यना ध्यान का प्रचार करते थे, वे स्वयं साधना का जीवन जीते थे और लोगों को सिखाते थे। ब्रह्मदेश (बर्मा) के ही श्री सत्यनारायण गोयनका का विपश्यना के प्रति बढ़ते उनके आकर्षण को देखकर ही सियाजी ऊबा खिन ने उन्हें लोगों को विपश्यना सिखलाने के लिए १९६९ में आचार्य पद सौंपा।२२१ गोयनका जी ने भारत में ही नहीं, अपितु ८० से भी अधिक देशों में लोगों को फिर से विपश्यना सिखायी और अपने आचार्य सियाजी ऊबा खिन का स्वप्न साकार किया। इस प्रकार विपश्यना ध्यान-पद्धति को पुनः विकसित करने का श्रेय श्री सत्यनारायण गोयनका जी को ही जाता है। अर्थ एवं परिभाषा
'प्रेक्षा' शब्द 'ईक्ष्' धातु से बना है, जिसका अर्थ है-देखना। प्र+ईक्षा= यानी गहराई में उतरकर देखना।२२२ विपश्यना ‘पश्य् ' धातु से बना है, जिसका अर्थ है- देखना। विपश्यना विपश्यना। इसका अर्थ भी प्रेक्षा के समान ही गहराई में उतरकर देखना है।२२३ ..
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