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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन प्रेक्षा और विपश्यना दोनों ही ध्यान-पद्धतियों के प्रयोग वर्तमान में चल रहे हैं। प्रेक्षा व विपश्यना- दोनों शब्दों का अर्थ भी एक ही है, परन्तु इनकी पद्धति और दर्शन में अन्तर है | प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है- आत्मा का साक्षात्कार, आत्म-दर्शन तथा विपश्यना का उद्देश्य है- दुःख को मिटाना, क्योंकि बौद्ध दर्शन में आत्मवाद की स्पष्ट अवधारणा नहीं है । २२० दार्शनिक आधार - प्रेक्षाध्यान और विपश्यना दोनों में ही क्रमशः श्वास- प्रेक्षा, शरीर- प्रेक्षा और आनापानसति व काय-विपश्यना के प्रयोग चलते हैं। लेकिन प्रेक्षाध्यान में इनके अलावा भी कई प्रयोग चलते हैं। जिनका वर्णन आगे किया जा रहा है। कुछ प्रयोग समान होने पर भी उनमें मूलभूत अन्तर दर्शन का है, क्योंकि एक आत्मवादी है तो दूसरा अनात्मवादी है, एक अनेकान्तवादी है तो दूसरा क्षणभंगवादी । प्रेक्षाध्यान- नित्यानित्य का ज्ञान होने पर ही प्रेक्षा होती है । उत्पाद और व्यय को ध्रौव्य से पृथक् नहीं किया जा सकता है। जो सत् है वह त्रयात्मक है । २२४ नित्य और अनित्य का ज्ञान ही प्रेक्षाध्यान का आधार है। जैन दर्शन में दुःख के साथ सुख को भी स्वीकार किया गया है । भगवान् महावीर ने जन्म, मरण, बुढ़ापा और रोग इन चारों दु:खों को स्वीकार करने के साथ ही साथ सुख को भी स्वीकार किया है। पौद्गलिक सुख भी सुख है। साधनाकाल में भी सुख की अनुभूति होती है। जैन दर्शन आत्मवादी है। आत्मा को स्वीकार करता है। प्रेक्षा का तो मूल आधार है आत्मा का ज्ञान २२५, क्योंकि बिना आत्मा का ज्ञान प्राप्त किये प्रेक्षा नहीं हो सकती । विपश्यना - बौद्ध दर्शन के अनुसार जब अनित्य, दुःख और अनात्म की चेतना प्रकट होती है तब विपश्यना का प्रादुर्भाव होता है । विपश्यना के लिए इन तीनों का होना आवश्यक है— अनित्य का ज्ञान, दुःख का ज्ञान और अनात्म का ज्ञान। इन तीनों का ज्ञान होने से ही विपश्यना होती है। अनित्य का ज्ञान- बौद्ध दर्शन का सिद्धान्त है - क्षणिकवाद । प्रति क्षण उत्पाद और व्यय हो रहा है। क्षणभंगुरता का ज्ञान ही अनित्यता का ज्ञान है। दुःख का ज्ञान- जन्म, बुढ़ापा, रोग और मरण ये चारों ही दुःख हैं। इस दुःख का ज्ञान ही विपश्यना का आधार है। अनात्म का ज्ञान बौद्ध दर्शन अनात्मवादी है। आत्मा के सन्दर्भ में बौद्ध दर्शन मौन है। अतः अनात्म का ज्ञान हो जाने पर विपश्यना प्रकट होती है। जैन दर्शन में सर्वथा अनित्यवाद, दुःखवाद और अनात्मवाद मान्य नहीं है। इन तीन आधारों से ही प्रेक्षा और विपश्यना के दार्शनिक आधार की भिन्नता स्पष्ट होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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