SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन साधक भावना से प्राप्त कर सके। कहा भी गया है- जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति असंयमरहित कठोर राजा के दोषों को जानता हुआ भी अपनी वृत्ति के लिए उसी के सहारे रहता है। ठीक उसी प्रकार साधक अन्य आलम्बन के अभाव में दोष देखने पर भी चतर्थ आरूप्य ध्यान के सहारे ही रहता है।२१६ इस प्रकार हम देखते हैं कि रूपावचर एवं अरूपावचर ध्यान में समानता और असमानता दोनों ही हैं। वर्तमान में जैन एवं बौद्ध ध्यान-पद्धति ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रेक्षाध्यान- वि० सं० २०१७ में युवाचार्य महाप्रज्ञ (वर्तमान आचार्य) के मन में प्रश्न उपस्थित हुआ कि क्या जैन साधकों की भी कोई ध्यान-पद्धति है? इसी प्रश्न के समाधान हेतु तेरापंथ के नवम आचार्य तुलसी ने उन्हें प्रेरित कर आगमों से इसे खोज निकालने के लिए मार्ग दर्शन दिया। २०१८ में आचार्य तुलसी ने 'मनोऽनुशासनम् ' पुस्तक को लिखा, जिसमें जैन साधना-पद्धति के कुछ रहस्य सामने आये। इसी क्रम में क्रमश: 'चेतना का उर्ध्वारोहण', 'महावीर की साधना का रहस्य', 'तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो' आदि पुस्तकें जैन योग-साधना के सम्बन्ध में प्रकाश में आयीं।२१७ कई शताब्दियों से ध्यान की जो परम्परा विच्छिन्न हो गयी थी, उसके लिए ये प्रयास पूर्ण नहीं थे। वि०सं० २०२९ में लाडनूं में एक महीने का व चूरू, राजगढ़, हिसार और दिल्ली में दस-दस दिन के साधना शिविर लगाये गये। जिसके कारण अनेक साधु-साध्वी तथा गृहस्थ लोग भी ध्यान-साधना में रुचि लेने लगे। वि०सं० २०३१ में 'अध्यात्म साधना केन्द्र' दिल्ली में सत्यनारायण जी गोयनका ने 'विपश्यना ध्यान शिविर का आयोजन किया। उस शिविर में अनेक साधु-साध्वियों के साथ युवाचार्य महाप्रज्ञ ने भी भाग लिया और आनापानसती व विपश्यना के प्रयोग किये। इन प्रयोगों से उन्हें जैन ध्यान-साधना पद्धति की समस्या का समाधान मिल गया। महाप्रज्ञजी ने गोयनकाजी से इस विषय पर विस्तार से चर्चा की। चर्चा करने के बाद उन्होंने जैनों का आचाराङ्ग, बौद्धों का विशद्धिमग्ग और पतञ्जलि का योगदर्शन- इन तीनों को लेकर ध्यान-सूत्रों की अभ्यास पद्धति की खोज प्रारभ कर दी।२१८ इस प्रकार लम्बे समय तक अन्वेषण करते-करते युवाचार्य महाप्रज्ञ को सफलता प्राप्त हुई। वि०सं० २०३२ में जैन परम्परागत ध्यान का अभ्यास-क्रम निश्चित करने का संकल्प हुआ और ध्यान की इस अभ्यास विधि का नाम 'प्रेक्षाध्यान' रखा गया। प्रेक्षाध्यान पद्धति को जनसमूह के सामने लाने का पूरा श्रेय आचार्य तुलसी व युवाचार्य महाप्रज्ञ को जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy