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ध्यान
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ध्यान के अन्य भेद
कुछ ग्रन्थों में ध्यान के प्रमुख चार भेदों के अतिरिक्त अन्य प्रकार से भी भेद किये गये हैं। ध्यान विचार नामक पुस्तक में ध्यान के चौबीस७४ (२४) प्रकार बताये गये हैं, जो इस प्रकार हैं
१. ध्यान २. परम ध्यान ३. शून्य ४. परम शून्य ५. कला ६. परम कला ७. ज्योति ८. परम ज्योति
बिन्दु १०. परम बिन्दु ११. नाद
परम नाद १३. तारा १४. परम तारा
लय १६. परम लय १७. लव
१८. परम लव १९. मात्रा
२०. परम मात्रा २१. पद २२. परम पद २३. सिद्ध २४. परम सिद्ध
देखा जाए तो उपर्युक्त बारह प्रकार ही हैं, उन बारह प्रकारों में परमपद लगाकर चौबीस प्रकार कर दिये गये हैं।
बौद्ध परम्परा में ध्यान का स्वरूप बौद्ध परम्परा में भी ध्यान का उतना ही महत्त्व है जितना कि जैन परम्परा में, क्योंकि कोई भी साधना हो, चाहे वह जैन परम्परा की हो या बौद्ध परम्परा की, ध्यान से विलग होकर उसकी विवेचना नहीं की जा सकती। अत: ध्यान बौद्ध-साधना का हृदय है। बौद्ध मान्यता के अनुसार चित्त के कारण ही साधक को संसार-भ्रमण करना पड़ता है, इसलिए चित्त-कुशलों को स्थिर करने के लिए ही ध्यान की महत्ता को स्वीकार किया गया है। जैसा कि कहा गया है-चित्त का अभ्यास ही ध्यान है।१७५ यानी किसी विषय पर चित्त को स्थिर कर चिन्तन करना ही ध्यान है। ध्यान लक्ष्य की सिद्धि के लिए किया जाता है। यद्यपि बौद्ध परम्परा के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय में मान्य लक्ष्य प्राप्ति में अंतर है, क्योंकि हीनयान में निर्वाण-प्राप्ति कर अर्हत् पद को प्राप्त करना प्रधान उद्देश्य माना जाता है और महायान का लक्ष्य बुद्धत्व की प्राप्ति है। बौद्ध परम्परा में 'ध्यान' और 'समाधि' शब्दों के प्रयोग ही देखने को मिलते हैं। ध्यान और समाधि में भी अन्तर है। समाधि जहाँ मात्र कुशल धर्मों से सम्बद्ध है, वहीं ध्यान कुशल एवं अकुशल (शुभ और अशुभ) दोनों प्रकार के भावों को ग्रहण करता है। अत: समाधि की अपेक्षा ध्यान का क्षेत्र बड़ा है।
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