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________________ ध्यान १९५ शुक्लध्यान सामान्यत: शुक्ल का अर्थ 'धवल' से लिया जाता है, किन्तु जैन ग्रन्थों में शुक्ल का अर्थ 'विशद' अर्थात् 'निर्मल' से लिया गया है। शुक्लध्यान, ध्यान की वह अवस्था है जिसमें साधक अपने लक्ष्य की पूर्णता को प्राप्त करता है, क्योंकि इस ध्यान में मन की एकाग्रता के कारण आत्मा में परम विशुद्धता आती है और कषायों, रागभावों अथवा कर्मों का सर्वथा परिहार हो जाता है। सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि आत्मा की अत्यन्त विशुद्ध अवस्था को शुक्लध्यान कहते हैं। ज्ञानार्णव में कहा गया है कि जो निष्क्रिय है, इन्द्रियातीत है और ध्यान की धारणा से रहित है, वह शुक्लध्यान है।१०३ जिस प्रकार मैल के धुल जाने पर वस्त्र साफ हो जाता है, उसी प्रकार दुर्गुणरहित निर्मल गुणों से युक्त आत्मा की परिणति ही शुक्लध्यान है।०४ समवायांग के अनुसार मन की आत्यन्तिक स्थिरता अर्थात् जब एकाग्रता सर्वशुभ-अशुभ भावों से निवृत्त होकर एकमात्र शुद्ध चैतन्य स्वरूप में स्थिर होती है तब उसे शुक्ल ध्यान कहते हैं।१०५ परन्तु यह भी सच है कि धर्मध्यान में परिपूर्ण हुआ अप्रमत्त संयमी ही शुक्लध्यान करने में समर्थ हो सकता है, क्योंकि जब तक वह पहली सीढ़ी (धर्म-ध्यान) नहीं चढ़ेगा तब तक दूसरी कैसे चढ़ पायेगा।१०६ शुक्लध्यान के भेद शुक्लध्यान को परम समाधि की अवस्था भी कहा जाता है। जैन ग्रन्थों में इसके भी चार भेद देखने को मिलते हैं-१०७ (१) पृथक्त्व-वितर्क-सविचार, (२) एकत्व-वितर्क-अविचार, (३) सूक्ष्मक्रिया-अप्रतिपाती, (४) व्युपरत-क्रिया-निवृत्ति। इसे ही हरिवंशपुराण में दो भागों में विभक्त करते हुए प्रथम दो को शुक्ल तथा बाद के दोनों को परम शुक्लध्यान के अन्तर्गत माना गया है।१०८ इसमें प्रथम दो प्रकार छद्मस्थ अर्थात् अल्पज्ञानियों के लिए विहित है, क्योंकि इसमें श्रुतज्ञानपूर्वक पदार्थों का अवलम्बन होता है तथा शेष दो प्रकार कषायों से पूर्णत: रहित होने के कारण केवलज्ञानी के लिए निर्देशित हैं, क्योंकि यह ध्यान पूर्णत: सर्वज्ञ को ही निरालम्बपूर्वक होता है।१०९ पृथक्त्व-वितर्क-सविचार यह ध्यान शुक्लध्यान की प्रथम अवस्था है, इसमें पृथक्-पृथक् रूप से श्रुत पर विचार होता है अर्थात् श्रुत को आधार मानकर किसी एक द्रव्य में उत्पाद-व्यय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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