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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन ५. हिंसा, चोरी, झूठ और परस्त्रीगमन, जुआ, कुसंगति, आलस्य, अतिनिद्रा, अनर्थ करना, लड़ना-झगड़ना और अतिकृपणता, मद्यपान आदि कलुषित कर्म से बचना चाहिए । १४९ निषिद्ध व्यापार परित्याग १६८ बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय १५० के निकाय पाँच में गृहस्थ उपासक के लिए पाँच अकरणीय व्यापारों का उल्लेख किया गया है १. अस्त्रों-शस्त्रों का व्यापार, २. प्राणियों का व्यापार, ३. मांस का व्यापार, ४. मद्य का व्यापार, ५. विष का व्यापार, इन पाँच व्यापारों के अतिरिक्त भी दीघनिकाय के लक्खणसुत्त १५१ में बुद्ध ने अन्य निम्न जीविकाओं को भी गर्हणीय माना है (१) तराजू एवं बटखारे की ठगी (२) माप की ठगी (३) रिश्वत की लेन-देन (४) वंचना (५) कृतघ्नता (६) साचियोग (कुटिलता) (७) छेदन (८) किसी भी जीव का वध (९) बन्धन (१०) डाका एवं लूटपाट की जीविका । श्रमणों की आचार संहिता बौद्ध परम्परा में श्रमण जीवन को प्रथम तथा गृहस्थ जीवन को द्वितीय स्थान प्राप्त है । बुद्ध ने हमेशा श्रमण जीवन को सर्वोच्च मानते हुए श्रमण जीवन को प्राथमिकता दी है । १५२ धम्मपद में श्रमण जीवन का सार बताते हुए कहा गया है- "समस्त पापों को नहीं करना, कुशल कर्मों का सम्पादन करना एवं चित्त शुद्ध रखना ही श्रमण जीवन का सार है । १५३ इसी में आगे कहा गया है कि जो छोटे-बड़े सभी पापों का शमन करता है, उसे पाप का शमनकर्ता होने के कारण श्रमण कहा जाता है । १५४ अतः कहा जा सकता है कि जिस प्रकार जैन परम्परा में श्रमण-जीवन से तात्पर्य इच्छाओं एवं आसक्तियों से ऊपर उठना तथा पापवृत्तियों का शमन करना माना गया है, ठीक उसी प्रकार बौद्ध परम्परा में भी तृष्णा का परित्याग एवं पापवृत्तियों का शमन ही श्रमण जीवन का हार्द है । पंच महाव्रत बौद्ध-परम्परा में उपासकों के लिए पंचशील, जिसका वर्णन पूर्व में किया जा चुका है तथा श्रमणों के लिए दस शील का वर्णन आता है। श्रमणों के इस दस शील में ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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