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योग-साधना का आचार पक्ष
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अचौर्य-बिना अनुमति किसी दूसरे की वस्तु को न लेना अर्थात् न किसी की वस्तु को चुराना चाहिए, न चुरवाना चाहिए न चुराने की अनुमति ही देनी चाहिए। यानी चोरी का सर्वथा त्याग कर देना ही अचौर्य शील है।
ब्रह्मचर्य - इसे स्वपत्नी संतोष भी कहा जाता है। जलते कोयले की भाँति अब्रह्मचर्य का त्याग कर देना चाहिए।
अमृषावाद - न तो स्वयं असत्य बोलना चाहिए, न बोलवाना चाहिए और न ही किसी को बोलने की अनुमति ही देनी चाहिए।
मद्यपान विरमणशील- इस धर्म का इच्छुक गृहस्थ मद्यपान का परिणाम उन्माद जानकर न तो उसका सेवन करे, न सेवन कराये और न करने की अनुमति दे । तीन उपोसथ
विकाल भोजन परित्याग - रात्रि एवं विकाल में भोजन का त्याग होना चाहिए। माल्य गन्ध विरमण - माला एवं सुगन्ध का सेवन नहीं करना ।
उच्च शय्या विरमण- उच्च शय्या का त्याग कर काठ, जमीन आदि पर विश्राम करना । दीघनिकाय में भी गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित कुछ नियमों का उल्लेख देखने को मिलता है, जो इस प्रकार है
१. नियमपूर्वक हमेशा प्रयत्नशील रहते हुए
धनोपार्जन करना । १४५
२. उपार्जित धन को चार भागों में विभक्त कर एक भाग का उपभोग करना चाहिए, दो भागों को पुनः व्यवसाय में लगाना चाहिए तथा एक भाग को भविष्य के आपत्तिकाल के लिए सुरक्षित रखना चाहिए । १४६
३. गृहस्थ उपासक के लिए माता-पिता पूर्व दिशा हैं, आचार्य दक्षिण दिशा हैं, स्त्री एवं पुत्र पश्चिम दिशा हैं, मित्र एवं अमात्य उत्तर दिशा हैं, दास एवं नौकर अधोदिशा हैं, श्रमण एवं ब्राह्मण उर्ध्व दिशा हैं। अतः इन छ: दिशाओं को अच्छी तरह नमस्कार कर उनकी यथायोग्य सेवा करनी चाहिए। "
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४. बुद्धिमान, सदाचार परायण, स्नेही, प्रतिभावान, निवृत्ति वृत्तिवाला, आत्मसंयमी, उद्योगी, आपत्ति में नहीं डिगनेवाला निरन्तर कार्य करनेवाला श्रावक ही मेधावी होता है, यश को प्राप्त करता है। अतः इन गुणों को अपने व्यावहारिक जीवन में उतारकर यशस्वी जीवन जीना चाहिए । १४८
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