SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग-साधना का आचार पक्ष १४९ साधक कितनी भी सावधानीपूर्वक स्थूल सृषावाद-विरमण का पालन करे, फिर भी दोषों की संभावना बनी रहती है। उपासकदशांगरे २ में इन्हीं दोषों से बचने का निर्देश किया गया है। ये पाँच प्रकार के हैं, इन्हें अतिचार कहते हैं १. सहसा-अभ्याख्यान - बिना सोचे समझे किसी पर झूठा आरोप लगा देना, किसी के प्रति लोगों में गलत धारणा पैदा करना, सज्जन को दुर्जन कहना आदि सहसाअभ्याख्यान है। २. रहस्य-अभ्याख्यान - किसी की गोपनीय बात को किसी अन्य के सामने प्रकट कर देना रहस्य- अभ्याख्यान कहलाता है। ३. स्वदार अथवा स्वपतिमंत्रभेद - पति-पत्नी की गुप्त बातों को किसी के सामने प्रकट कर देना स्वदार या स्वपतिमंत्रभेद कहलाता है। ४. मृषा उपदेश - किसी भी व्यक्ति को सच-झूठ समझाकर कुमार्ग की ओर प्रेरित करना मृषा-उपदेश है। ५. कूट लेखकरण - झूठे लेख लिखना, झूठे दस्तावेज तैयार करना, झूठे हस्ताक्षर करना, झूठे सिक्के तैयार करना आदि कूट लेखकरण अतिचार हैं। साधक को उपर्युक्त अतिचारों से बचने का प्रयास करना चाहिए। मुनि सुशील कुमार जी के शब्दों में-यद्यपि स्थूल असत्य और सूक्ष्म असत्य की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है, तथापि जिस असत्य को दुनिया असत्य मानती है, जिस असत्य भाषण से मनुष्य झूठा कहलाता है, जो लोक निन्दनीय और राजदण्डनीय है, वह असत्य स्थूल असत्य है, श्रावक ऐसे स्थूल भाषण का त्याग करता है। झूठी साक्षी देना, झूठा दस्तावेज लिखना, किसी की गुप्त बात प्रकट करना, चुगली करना, गलत रास्ते ले जाना, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा करना आदि स्थूल मृषावाद में सम्मिलित है।३३ उपर्युक्त तथ्यों की चर्चा उपासकदशांग के अतिरिक्त धर्मामृत ४ (सागार) पुरुषार्थसिद्धयुपाय५, अमितगतिश्रावकाचार२६ योगशास्त्र,२७, धर्मबिन्दु आदि में भी मिलती है। स्थूल अदत्तादान विरमण अदत्तादान का अर्थ ही होता है बिना दी हुई वस्तु (अदत्त) का ग्रहण (आदान)। श्रावक के लिए ऐसी चोरी का त्याग अनिवार्य है जिसके करने से राजदण्ड भोगना पड़े, समाज में अविश्वास उत्पन्न हो, प्रामाणिकता नष्ट हो, प्रतिष्ठा को धक्का लगे। किसी के घर आदि में सेंध लगाना, किसी की गाँठ काटना, किसी का ताला तोड़ना, किसी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy