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________________ १५० जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन लूटना, किसी की चीज बिना पूछे उठाकर रख लेना, ठगना, किसी मिली हुई वस्तु का पता लगाने की कोशिश न करना या फिर चौर्यबुद्धि से किसी की वस्तु उठा लेना अथवा अपने पास रख लेना आदि चोरी के अन्तर्गत आते हैं। इस प्रकार की चोरी का त्याग ही जैन आचारशास्त्र में स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत के नाम से प्रसिद्ध है। योगशास्त्र में कहा गया है कि बिना किसी की आज्ञा से किसी वस्तु को ले लेने पर मन में अशान्ति उत्पन्न हो जाती है, दिन-रात सोते-जागते चौर्यकर्म की चुभन होती रहती है।३९ अत: अस्तेय व्रत की सुरक्षा के निमित्त साधक को उन्हें भी छोड़ देना चाहिए। उपासकदशांग में निम्नलिखित पाँच अतिचारों से बचने का निर्देश दिया गया है (१) स्तनाहत - चोरी की वस्तु खरीदना या बेचना स्तेनाहृत है। (२) तस्कर प्रयोग - चोरी करने की प्रेरणा देना, चोर को सहायता देना, तस्कर को शरण देना आदि तस्कर प्रयोग कहलाता है। (३) राज्यादिविरुद्ध कर्म - राजकीय नियमों का उल्लघंन करना राज्यादि विरुद्ध कर्म कहलाता है। यथा- अवैधानिक व्यापार करना, बिना अनुमति के परराज्य की सीमा में प्रवेश करना, निषिद्ध वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे देश में ले जाना आदि। तात्पर्य है समाज के किसी भी हितकर नियम, जिससे प्रजा के हित का तिरस्कार होता है, का उल्लंघन करना राज्यादिविरुद्ध कर्म है। ___ (४) कूट तोल-कूटमान- वस्तु के लेन-देन में न्यून या अधिक का प्रयोग करना कूट तोल-कूटमान कहलाता है। माप-तौल में बेईमानी करना भी एक प्रकार की चोरी है, अत: श्रावक को माप-तौल में प्रामाणिकता का ध्यान रखना चाहिए। (५) तत्प्रतिरूपक व्यवहार - वस्तुओं में मिलावट करना तत्प्रतिरूपक व्यवहार है। बहुमूल्य वस्तुओं में अमूल्य वस्तुओं को मिलाना, शुद्ध वस्तु में अशुद्ध वस्तु मिलाना, सुपथ्य वस्तु में कुपथ्य वस्तु मिलाना और इस प्रकार अनुचित लाभ उठाना श्रावक के लिए वर्जित है। अत: श्रावक को इन सब अतिचारों से हमेशा बचना चाहिए। जैसा कि प्रबोधसार में कहा गया है कि अचौर्याणुव्रती श्रावक वही है जो दूसरे की तृणमात्र वस्तु को चुराने के अभिप्राय से न अपने लिए ग्रहण करता है और न दूसरों को देता है। स्वदार संतोष विरमण ___अपनी पत्नी के अतिरिक्त शेष समस्त स्त्रियों के साथ मैथुन सेवन का मन, वचन व कायपूर्वक त्याग करना स्वदार संतोष व्रत कहलाता है। उपासकदशांग में वर्णन आया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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