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________________ १४८ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन मजदूर, नौकर आदि मनुष्यों पर उनकी शक्ति से अधिक बोझा लाद देना अतिभार है। ५. अन्नपान निरोध - नौकर आदि को समय पर खाना न देना, पूरा खाना न देना, अपने पास संग्रह होने पर भी आवश्यकता के समय किसी की सहायता न करना, अपने अधीनस्थ पशुओं एवं मनुष्यों को पर्याप्त खाना आदि न देना अन्नपान निरोध कहलाता है। स्थूल मृषावाद-विरमण असत्य या झूठे व्यवहार का त्याग करना स्थूल मृषावाद है। जिस प्रकार हिंसा को न करना प्राणातिपात विरमण है और उससे साधक को बचना आवश्यक है, उसी प्रकार स्थूल मृषावाद से बचना भी शक्य है। उपासकदशांग में गृहस्थ साधक को असत्य से विरत होने हेतु प्रतिज्ञा करते हुए वर्णित किया गया है। कहा गया है कि मैं स्थूल मृषावाद का यावत् जीवन के लिए मन, वचन और काय से त्याग करता हूँ, मैं न स्वयं मृषा भाषण करूँगा न अन्य से करवाऊँगा।२६ स्थूल मृषा से तात्पर्य है ऐसा झूठ जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, साथियों में प्रामाणिकता न मानी जाय, लोगों में अप्रीति हो, राजदण्ड का भागी होना पड़े- ऐसा झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ के कारणों का उल्लेख करते हुए श्रावक प्रतिक्रमण में पाँच प्रकार के स्थूल मृषा का निरूपण किया गया है, जो इस प्रकार है १. पुत्र-पुत्रियों के विवाह के निमित्त सामनेवाले पक्ष के सम्मुख झूठी प्रशंसा करना-करवाना आदि। २. पशु-पक्षियों के क्रय-विक्रय में मिथ्या प्रशंसा का आश्रय लेना। ३. भूमि के सम्बन्ध में झूठ बोलना-बोलवाना। ४. किसी की अमानत को दबाने के लिए झूठ का सहारा लेना। ५. झूठी गवाही देना-दिलवाना, रिश्वत खाना-खिलाना आदि। इसी को आचार्य हेमचन्द्र ने कन्यालीक, गो-अलीक, भूमि-अलीक, न्यासापहार तथा कूट-साक्षी आदि रूप में निरूपित किया है और कहा है कि ये सभी लोकविरूद्ध हैं, विश्वासघात के जनक हैं तथा पुण्यनाशक हैं, इसलिए श्रावकों को स्थूल असत्य से बचना चाहिए।२८ इसी प्रकार पुरुषार्थसिद्धयुपाय २९ एवं अमितगतिश्रावकाचार ३० में भी असत्य के चार प्रकार बताये गये हैं- १. सद्-आलापन २. असद्-आलापन ३. अर्थान्तर और ४. निंद्य। उपासकाध्ययन में असत्यासत्य, सत्यासत्य, सत्य-सत्य और असत्यअसत्य आदि चार प्रकारों का उल्लेख मिलता है।३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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