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________________ योग-साधना का आचार पक्ष १४७ सामर्थ्य रखते हैं तथा स्थावर की श्रेणी में वे जीव आते हैं जो स्वेच्छानुसार गति का सामर्थ्य नहीं रखते। यथा- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति । यहाँ प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि गृहस्थ साधक को केवल त्रस जीवों की हिंसा से ही विरत रहने का विधान क्यों है? जबकि श्रमण साधक के लिए त्रस एवं स्थावर दोनों प्रकार के प्राणियों की हिंसा से विरत रहने को कहा गया है। इसके उत्तरस्वरूप यह कहा जा सकता है कि गृहस्थ साधक आजीविकादि के उपार्जन में एकेन्द्रिय स्थावर जीवों की हिंसा से बच नहीं सकता। व्रतों के पालन में उसे जो छूट दी गयी है उसका अभिप्राय यही है कि वह अपने गृहस्थ जीवन-चर्या का भली-भाँति निर्वहन कर सके। तात्पर्य है गृहस्थ साधक के लिए स्थावर जीवों की हिंसा का सर्वथा निषेध नहीं किया है और आवश्यक भी नहीं है । वह साधक पर निर्भर करता है। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है- अहिंसा धर्म का ज्ञाता और मुक्ति का अभिलाषी श्रावक स्थावर जीवों की भी निरर्थक हिंसा नहीं करे। २३ लेकिन संकल्प के अभाव में आजीविका के लिए व्यापार एवं जीवनरक्षण के क्षेत्र में होनेवाली हिंसा से उसका व्रत दूषित नहीं होता है, क्योंकि व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में साधक संकल्पपूर्वक त्रस प्राणियों की हिंसा से विरत तो होता है, किन्तु क्रियाओं के सम्पादन में सावधानी रखते हुए भी अज्ञानवश सादि प्राणियों कि हिंसा हो भी जाती है तो उस हिंसा से साधक का व्रत दूषित नहीं होता है । २४ श्रावक द्वारा सावधानीपूर्वक व्रत का पालन करते हुए भी कभी-कभी प्रमादवश दोष लगने की संभावना रहती है, अतः निम्नलिखित दोषों से साधक को बचना चाहिए । २५ १. बन्ध किसी भी त्रस प्राणी को कठिन बन्धन से बाँधना या उसे किसी भी इष्ट स्थान पर जाने से रोकना, अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को निश्चित समय से अधिक काल तक रोकना, उनसे निर्दिष्ट समय के उपरान्त कार्य लेना आदि बन्ध है । - २. वध किसी भी प्राणी को मारना वध है। इनके अतिरिक्त निर्दयतापूर्वक क्रोध में अपने आश्रित किसी भी व्यक्ति को मारना पीटना, गाय, भैंस, घोड़ा, बैल आदि को लकड़ी, चाबुक पत्थर आदि से मारना, किसी पर अनावश्यक अथवा अनुचित भार डालना, किसी की लाचारी का अनुचित लाभ उठाना, किसी का अनैतिक ढंग से शोषण कर अपनी स्वार्थपूर्ति करना आदि वध का ही रूप है। - ३. छविच्छेद - किसी भी प्राणी का अंगोपांग काटना छविच्छेद कहलाता है। किसी के उचित पारिश्रमिक में न्यूनता करना, कम वेतन देना, कम मजदूरी देना आदि क्रियाएँ भी छविच्छेद की ही भाँति दोषयुक्त हैं। Jain Education International ४. अतिभार - प्राणियों पर आवश्यकता से अधिक और उसकी शक्ति से ज्यादा काम लेना या बोझा लाद देना अतिभार है। बैल, ऊँट, अश्व आदि पशुओं पर अथवा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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