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________________ १३४ __ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन बिन्द पर ठहरता है, ठीक उसी प्रकार एक जीवित प्राणी का जीवन केवल विचार के रहने के समय तक ही रहता है। जैसे ही वह विचार समाप्त होता है, जीवित प्राणी भी समाप्त समझा जाता है।६१ जैसा कि पूर्व में हमने देखा कि प्रतीत्यसमुत्पाद हेतु-प्रत्ययवाद का सिद्धान्त है। अर्थात् इसके होने पर ऐसा होता है, इसके नहीं होने पर ऐसा नहीं होता।६२ यह कार्य - कारण सिद्धान्त ही सांसारिक वस्तुओं की अनित्यता, सभी धर्मों की क्षणभंगुरता प्रमाणित करता है। बौद्ध दार्शनिकों का मानना भी है कि 'सर्वे पदार्थाः क्षणिका: सत्वात्' अर्थात् सत्व हेतु से सभी पदार्थ क्षणिक सिद्ध होते हैं। तात्पर्य यह है कि वस्तु की सत्ता कारण से ही उत्पन्न होती है अर्थात् कारण पर निर्भर है। यदि भाव कारण से उत्पन्न होता है तो वह कार्य है और यदि कार्य है तो वह अवश्य विनाशी है। जिसकी उत्पत्ति है उसका विनाश अवश्यम्भावी है। कारण और कार्य तो पूर्व और उत्तर क्षण हैं। पूर्व क्षण का विनाश होने पर ही उत्तर क्षण की उत्पत्ति हो सकती है। वह उत्तर क्षण भी अपने उत्तर क्षण को जन्म देता है। इस प्रकार सम्पूर्ण संसार के भाव केवल अनित्य क्षणों की सन्तति है। शान्तिरक्षित का कहना है कि अभाव या विनाश तो भाव के साथ ही उत्पन्न होता है। भाव तो चल है और चल होने के कारण वह विनाश-स्वरूप है।६३ क्षणिकवाद के परवर्ती बौद्ध-चिन्तकों ने सत्ता (Reality) को परिभाषित करते हुए कहा है कि अस्तित्व उसी का है जिसमें कार्य करने की क्षमता है। अर्थक्रियाकारित्वम् सत् अर्थात् यह अर्थ क्रियाकारित्व ही परिवर्तनशीलता कहलाती है। इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिसमें परिवर्तन की क्षमता है, कार्य करने की क्षमता है, उसी का अस्तित्व है। अत: परिवर्तनशीलता ही वस्तु का धर्म है। अपनी इस मान्यता को प्रमाणित करने के लिए बौद्धानुयायी बीज का उदाहरण देते हैं। बीज में अंकुर देने, पौधा उत्पन्न करने की क्षमता है इसलिए उसका अस्तित्व है, क्योंकि बीज में स्थायित्व नहीं है। यदि उसे स्थायी मान लिया जाय और ऐसा समझा जाये कि एक से अधिक क्षणों तक यह उत्पन्न करने की क्रिया कर सकता है या करता है, प्रत्येक क्षण में यह समान रूप से पौधा उत्पन्न कर सकता है तब तो बीज का स्थायित्व मान्य होगा अन्यथा उसका स्थायित्व भंग होगा। किन्तु ऐसा नहीं देखा जाता कि कोई भी बीज प्रत्येक क्षण में समान रूप से पौधा उत्पन्न करने की क्षमता रखता है, क्योंकि बीज जब घर में रखा हुआ होता है तब तो उसमें पौधा नहीं निकलता। उसमें पौधा तब उत्पन्न होता है जब उसे मिट्टी में डाला जाता है। घर में या कपड़े में बीज से पौधा नहीं निकलता। अत: मिट्टी में डालने पर बीज से पौधा का अंकुरित होना, बीज में होनेवाले परिवर्तन को बताता है। यदि कोई ऐसा कहे कि बीज चाहे घर में रहे अथवा खेत में, पौधा उत्पन्न करने की क्षमता उसमें सदा स्थायी रूप से बनी रहती है और वह किसी खास क्षण में नहीं बल्कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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