SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन एवं बौद्ध योग का तत्त्वमीमांसीय आधार १३३ करनेवाले को ही उसका फल भोगना पड़ता है।५८ इस संसार में कोई भी ऐसा स्थान नहीं जहाँ चले जाने से मनुष्य फल से बच जाये।५९ जो पाप है उसे आत्मा ने किया है, वह आत्मा से ही उत्पन्न है।६० यद्यपि धम्मपद की ये उक्तियाँ शाश्वत आत्मा की ओर इंगित करती हैं, परन्तु जहाँ तक मैं समझती हूँ ये उक्तियाँ सन्तान रूप को ही मान्यता देने वाली हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान् बुद्ध न तो पूर्णत: आत्मवादी हैं और न पूर्णत: अनात्मवादी ही। जैसे अपने बच्चे को दाँत से पकड़कर ले जाती हुई व्याघ्री न तो अपने बच्चे को अति निष्ठुरता से दाँतों से दबाती है और न अति शिथिलता से ही। उसी प्रकार बुद्ध यह पूछे जाने पर कि आत्मा है या नहीं, विधेयात्मक या निषेधात्मक उत्तर नहीं देते। दरअसल शाश्वत और उच्छेदवाद, इन दो अन्तों की पूर्व मान्यता को भगवान् बुद्ध ने समन्वयरूप प्रदान करते हुए मध्यममार्ग को प्रशस्त किया। इसलिए कहा जा सकता है कि बुद्ध का अनात्मवाद भी मध्यममार्गी है। क्षणभंगवाद क्षणिकवाद बौद्धदर्शन का मौलिक सिद्धान्त है। बुद्ध ने अनित्यवाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया और कहा कि क्षणिकता तो सिर्फ चेतना में है। किन्तु उनके शिष्यों ने उनके आंशिक क्षणिकवाद को पूर्ण क्षणिकवाद में परिणत कर दिया। शिष्यों ने माना कि केवल चेतना ही नहीं बल्कि शरीर भी क्षणिक है, सभी वस्तुएँ क्षणिक हैं। प्रत्येक वस्तु क्षण-क्षण बदलती रहती हैं। क्षणिकवाद का अर्थ ही है- किसी वस्तु का अस्तित्व सनातन नहीं है। किसी भी वस्तु का अस्तित्व कुछ काल तक ही रहता है। जिस प्रकार एक प्रवाह दूसरे प्रवाह को जन्म देता है, दूसरा तीसरे को, तीसरा चौथे को, उसी प्रकार एक क्षण दूसरे को तथा दूसरा तीसरे को जन्म देती है। यही प्रवाह-नित्यता है, क्षणिक सन्तान है। इस प्रवाह-नित्यता या क्षणिक-सन्तान को ही हम भ्रमवश सनातन या शाश्वत मान लेते हैं। वस्तुत: कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं हैं, सभी अनित्य हैं, क्षणिक हैं, परिणामी हैं। परिणाम या परिवर्तन वस्तु का स्वभाव है। वस्तु में क्षण-क्षण परिवर्तन होता रहता है, जो आज है, वह कल नहीं, कल का स्वरूप दूसरा होगा। नदी के प्रवाह की भाँति सभी वस्तु सतत् परिवर्तन की अवस्था में हैं। क्षणिकवाद के अनुसार किसी भी पदार्थ का अस्तित्व (Existence) केवल एक क्षण (One moment) के लिए होता है। उस एक क्षण की अवधि पलक गिरने के समय से भी कम मानी जाती है। क्षणिकवाद के दृष्टिकोण में एक जीवित-प्राणी के जीवन का समय बहुत छोटा होता है। एक रथ का पहिया घूमने के समय हाल के एक विशेष बिन्दु पर ही घूमता है और ठहरने के समय भी एक विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy