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________________ १२६ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन पर संस्कार के तीन विभाजन किये गये हैं- काय-संस्कार, मन-संस्कार और वाक्-संस्कार। संस्कार की उत्पत्ति यथार्थ ज्ञान के अभाव के कारण होती है। ३. विज्ञान - व्यक्ति पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार माता के गर्भ में आकर सर्वप्रथम चैतन्य की अवस्था को प्राप्त करता है। चैतन्य प्राप्ति की यह अवस्था ही विज्ञान है। विज्ञान संस्कार के कारण होता है। ४. नामरूप - गर्भ-क्षण से लेकर शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं की रचना का समय ही नामरूप कहलाता है। इसे माता के गर्भ में प्रतिसन्धि की अवस्था भी कहते हैं। नामरूप विज्ञान के कारण होता है। ५. षडायतन - पाँच इन्द्रिय और एक मन षडायतन कहलाता है। यह उस अवस्था का सूचक है जब भ्रूण माता के गर्भ से बाहर आता है, उसके अंग-प्रत्यंग बिल्कुल तैयार हो जाते हैं, परन्तु अभी तब वह उन्हें प्रयुक्त नहीं करता। षडायतन नामरूप के कारण होता है। ६. स्पर्श - यह इन्द्रिय और विषय के सम्पर्क या संयोग की अवस्था है। यह शैशव की वह अवस्था है जब शिशु बाह्य जगत के पदार्थों के साथ सम्पर्क में आता है। वह अपनी इन्द्रियों के प्रयोग से बाहरी विषयानुभूति की अवस्था को समझने का प्रयत्न करता है, किन्तु स्पष्ट ज्ञान नहीं होता है। स्पर्श षडायतन के कारण होता है। ७. वेदना - अनुभव करने का नाम ही वेदना है। इन्द्रिय और विषयों के सम्पर्क से हमें अनुभव प्राप्त होता है। यह शिशु की वह दशा है जब वह पाँच-छह वर्षों के अनन्तर सुख-दुःख की भावना से परिचित होता है। स्पर्श से बाह्य जगत का ज्ञान उत्पन्न होता है और वेदना से अन्तर्जगत का ज्ञान जाग्रत होता है। दस वर्ष तक बालक के शरीर व मन की प्रकृतियाँ बढ़ती हैं, परन्तु अभी उसे विषय सुखों का ज्ञान नहीं होता। सुख-दुःख, न सुख, न दुःख इसकी तीन अवस्थाएँ हैं। वेदना स्पर्श से उत्पन्न होती है। ८. तृष्णा - यह विषयों के प्रति आसक्ति है। हमारी इन्द्रियों का जब विषयों से सम्पर्क होता है तो हम सुखकर विषयों को ग्रहण करना चाहते हैं तथा दु:खकर विषयों का त्याग करना चाहते हैं। इसके तीन प्रकार बताये गये हैं- कामतृष्णा, भवतृष्णा तथा विभवतृष्णा। जिसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। बौद्ध दर्शन के अनुसार ये तीन आसक्तियाँ मुख्य हैं। इस आसक्तियों के कारण ही मनुष्य लौकिक एवं पारलौकिक सुख के पीछे दौड़ता है। विषय भोग में वह थकता नहीं। अन्तत: विषय ही व्यक्ति का भोग कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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