SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन एवं बौद्ध योग का तत्त्वमीमांसीय आधार १२१ मोहनीय के १६ भेद हो जाते हैं। नोकषाय के नौ भेद होते हैं- हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। ये कुल मिलाकर मोहनीय कर्म के २८ भेद या उत्तर प्रकृतियाँ हैं- दर्शन मोहनीय ३ + कषाय मोहनीय १६ + नोकषाय मोहनीय ९। आयुष्यकर्म- इसकी उत्तर प्रकृतियाँ चार हैं- १. देवायु, २. मनुष्यायु, ३. तिर्यञ्चायु तथा ४. नरकायु। नामकर्म - इसकी उत्तर प्रकृतियाँ मुख्यत: चार हैं- १. पिण्ड प्रकृतियाँ २. प्रत्येक प्रकृतियाँ ३. त्रस दशक तथा ४. स्थावर दशक। इनमें से प्रत्येक की क्रमश: ७५, ८, १० एवं १० उत्तर प्रकृतियाँ होती हैं। ये कुल मिलाकर १०३ होती हैं। गोत्रकर्म - इसकी उच्च व नीच ये ही दो प्रकृतियाँ हैं। अन्तरायकर्म - इसकी पाँच उत्तर प्रकृतियाँ हैं- १. दानान्तराय, २. लाभान्तराय, ३. भोगान्तराय, ४. उपभोगान्तराय तथा ५. वीर्यान्तराय। स्थितिबन्ध - यह कर्म की काल मर्यादा को इंगित करता है। कोई भी कर्म अपनी काल मर्यादा के अनुसार ही किसी जीव के साथ रहता है। जब उसका समय समाप्त हो जाता है तब वह जीव से अलग हो जाता है। यही कर्मबन्ध की स्थिति होती है। अनुभाग बन्ध- यह कर्मफल की व्यवस्था है। कषायों की तीव्रता और मन्दता के अनुकूल ही कर्मों के फल भी प्राप्त होते हैं। कषायों की तीव्रता से अशुभ कर्मफल अधिक एवं बलवान होते हैं। कषायों की मन्दता से शुभ कर्म-फल अधिक एवं बलवान होते हैं। कर्मबन्ध की ये चार अवस्थायें साथ ही होती हैं, किन्तु आत्मा और कर्म के सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए प्रदेशबन्ध को पहला स्थान दिया गया है, क्योंकि जब तक कर्म और आत्मा सम्बन्धित नहीं होंगे तब तक अन्य व्यवस्थायें संभव नहीं हो पायेंगी। कर्म की विविध अवस्थायें बन्धन, परिवर्तन, सत्ता, उदय, क्षय इत्यादि के आधार पर कर्म की ग्यारह अवस्थाएँ मानी गयी हैं १. बन्धन- कर्म और आत्मा का मिलकर एक रूप हो जाना बन्धन है। २. सत्ता- बन्ध कर्म-परमाणु उस समय तक आत्मा के साथ रहते हैं जब तक निर्जरा या कर्मक्षय की स्थिति न आ जाए। कर्म का इस प्रकार आत्मा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy