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________________ १२० जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन शरीर धारण करनेवाला जीव ही प्रमाद और योग के कारण बन्धन में आता है। अतः प्रमाद और योग बन्धन का कारण है। इसी तरह स्थानांग में भी कषाय यानी क्रोध, मान, माया और लोभ को कर्मबन्ध का कारण माना गया है।३९ कर्मबन्ध की प्रक्रिया और प्रकार ___ लोक में सर्वत्र कर्म-पुद्गल होते हैं, ऐसी जैन दर्शन की मान्यता है। जब जीव मन, वचन और काय से किसी प्रकार की प्रवृत्ति करता है तो उसके अनुकूल कर्म-पुद्गल उसकी ओर आकर्षित होते हैं। उसकी प्रवृत्ति में जितनी तीव्रता या मन्दता होती है उसके अनुसार ही पुद्गलों की संख्या अधिक या कम होती है। इस कर्मबन्ध के चार प्रकार माने गये हैं प्रदेशबन्ध - जीव के द्वारा ग्रहण किये गये कर्म-पुद्गलों का उसके साथ कर्म के रूप में बन्ध जाना प्रदेशबन्ध कहलाता है। इसको कर्म का निर्माणक या व्यवस्थाकरण माना गया है। प्रकृतिबन्ध - प्रदेशबन्ध में कर्म-परमाणुओं के परिमाण पर विचार किया जाता है, किन्तु प्रकृति-बन्ध में कर्म के स्वभावानुकूल जीव में जितने प्रकार के परिवर्तन होते हैं उन्हें विवेचित किया जाता है। यह स्वभाव व्यवस्था है। स्वभाव या कार्यभेद के कारण कर्मों के आठ भाग बनते हैं- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र तथा अन्तराय। इनके भी भेद-उपभेद देखे जाते हैं ज्ञानावरणीय कर्म - इसकी पाँच उत्तर प्रकृतियाँ होती हैं- १. मतिज्ञानावरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधिज्ञानावरण ४. मन:पर्यायज्ञानावरण और ५. केवलज्ञानावरण। दर्शनावरणीय कर्म - इसकी नौ उत्तर प्रकृतियाँ हैं- १. चक्षुदर्शनावरण, २.अचक्षुदर्शनावरण, ३. अवधिदर्शनावरण, ४. केवलदर्शनावरण ५. निद्रा, ६. निद्रानिद्रा, ७. प्रचला, ८. प्रचला-प्रचला और (९) स्त्यानगृद्धि। वेदनीय कर्म - इसकी दो उत्तर प्रकृतियाँ हैं- १. सातावेदनीय तथा २. असातावेदनीय। मोहनीय कर्म - इसकी भी मुख्य दो ही उत्तर प्रकृत्तियाँ हैं- १. दर्शन मोहनीय तथा २. चारित्र मोहनीय। दर्शन मोहनीय के तीन भेद होते हैं- (क) सम्यक्त्व मोहनीय (ख) मिथ्यात्व मोहनीय तथा (ग) मिश्र मोहनीय। चारित्र मोहनीय के दो भेद होते हैं (क) कषाय मोहनीय तथा (ख) नोकषाय मोहनीया कषाय मोहनीय के चार भेद हैं- क्रोध, मान, माया, लोभ। कषाय की तीव्रता और मन्दता के कारण इन चार में से प्रत्येक के चार भेद होते हैं- अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन। इस प्रकार कषाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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