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________________ जैन एवं बौद्ध योग-साहित्य १०३ आया है।५५ २५वें सुत्त में अशुद्ध और शुद्ध तपस्या को निरूपित किया गया है।५६ कहा गया है कि जब तपस्वी तप करता है, तब वह उस तप से न तो संतुष्ट होता है और न परिपूर्ण संकल्प, वह न घमण्ड करता है, न बेसुध होता है और न प्रमाद करता है तो वह वहाँ परिशुद्ध रहता है।५७ मज्झिमनिकाय मज्झिमनिकाय का सभी निकायों में अपना अनुपम स्थान है, जिसके १४वें सुत्त को छोड़कर प्रत्येक भाग में दस-दस सुत्त हैं। चूँकि इसमें मध्यम आकार के सुत्तों का संग्रह है, इसीलिए इसका नाम मज्झिमनिकाय पड़ा।५८ राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी में अनुवाद कर इस निकाय को “बुद्धवचनामृत' नाम से विभूषित किया है। यह पन्द्रह भागों में विभक्त है। इस ग्रन्थ के अन्तर्गत १५२ सुत्त संग्रहीत हैं। इसका हिन्दी अनुवाद पं० राहुल सांकृत्यायन ने किया है।५९ ग्रन्थ के प्रथम भाग के आक्खेयसुत्त में भिक्षुओं को शील सम्पन्न तथा प्रतिमोक्ष रूपी संयम से संयमित होकर विचार करने का निर्देश दिया गया है। चौथे भाग के महाअस्सपुरसुत्त तथा चूलअस्सपुरसुत्त में भिक्षुओं के कर्तव्यों को प्रकाशित किया गया है। पाँचवे भाग के महादेवल्लसुत्त में वेदना, संज्ञा, शील, समाधि और प्रज्ञा के महत्त्व को बतलाया गया है। सातवें भाग के चूलमालूक्यसुत्त में आध्यात्मिकता के प्रति उदासीनता दिखाते हुए चूलमालुक्य द्वारा पूछे गये लोक शाश्वत है या अशाश्वत आदि दस प्रश्नों को अव्याकृत बताते हुए भगवान् ने इन सब प्रश्नों को वैराग्य, निरोध, शान्ति, परमज्ञान तथा निर्वाण आदि के लिए अनावश्यक बताया है।६१ उपर्युक्त साहित्य के अतिरिक्त इतिवृत्तक, महावग्ग, मिलिन्दपह, विभंग, शिक्षा समुच्चय आदि साहित्य में योग के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। वर्तमान में प्रचलित बौद्ध साधना-विधि (विपश्यना) पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- आनापानसती, विपश्यना साधना, बौद्ध साधना पद्धति, प्रज्ञा के प्रकाश में सम्यक् दृष्टि आदि। सन्दर्भ १. सासिज्जई जेण तयं सत्थं तं चाऽविसेसियं नाणं। आगम एवं य सत्थं आगमसत्थं तु सुयनाणं ।। विशेषावश्यकभाष्य, ५५९ २. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः ।। स्याद्वादमंजरी, २८ ३. आप्तोपदेशः शब्दः । न्यायसूत्र , १/१/७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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