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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
में प्रकाशित हुआ । विषय प्रतिपादन की दृष्टि से १५ अध्यायों में विभक्त इसमें दानशील, लोक, धातु एवं गति, कर्म तथा उसके भेद, स्कन्ध धातु, आयतन, संस्कार, प्रतीत्यसमुत्पाद, अनास्रव, पुद्गल, ज्ञान, ध्यान, समाधि, बोधिपाक्षिक धर्म, चार आर्यसत्य आदि विषय मुख्य हैं। ध्यान एवं चित्त की वृत्तियों का अध्ययन १०वें से १३वें अध्याय तक देखने को मिलता है। अभिधर्मकोश
बौद्ध साहित्य में अभिधर्मकोश का स्थान महत्त्वपूर्ण है। यह एक ऐसा ग्रन्थ है जिसे बौद्ध परम्परा की दोनों शाखाओं में समान रूप से मान्यता प्राप्त है। इसके रचनाकार आचार्य वसुबन्धु हैं,जिनका समय चौथी शताब्दी का उत्तरार्ध और पाँचवी शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है। इसकी भाषा पालि है तथा इसमें कुल मिलाकर ६०० कारिकाएँ हैं,जो आठ परिच्छेदों में विभक्त हैं और जिनमें क्रमश: धातु, इन्द्रिय, लोक, कर्म, अनुशय, ज्ञान, पुद्गल और ध्यान इन विषयों पर विस्तार से चर्चा की गयी है।
इस ग्रन्थ पर स्वयं वसुबन्धु ने भी भाष्य लिखा है। बाद में चलकर चीनी विद्वान् परमार्थ एवं ह्वेनसांग ने इसका अनुवाद किया है। परन्तु इसकी विस्तृत व्याख्या अभिधर्मकोशभाष्य में की गयी है, जिसे आचार्य यशोमित्र ने किया है। इतना ही नहीं आधुनिक विद्वानों ने भी इसे सम्पादित कर एक नया रूप दिया है। दीघनिकाय
दीघनिकाय सुत्तपिटक का पहला उपविभाग है। दीर्घ आकारों के सुत्तों (सूत्रों) का संग्रह होने के कारण इसे दीघनिकाय कहा गया है। आकार की दृष्टि से जो बुद्धोपदेश बड़े हैं वे इस निकाय में संग्रहीत हैं। यह ग्रन्थ तीन भागों में विभक्त है यथा-सीलक्खन्ध, महावग्ग और पाटिकवग्ग। महामहोपाध्याय पं० राहुल सांकृत्यायन ने इस ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद किया है। इसमें कुल मिलाकर चौंतीस (३४) सुत्त हैं, जिनमें सीलक्खन्ध में १ से १२ सुत्त, महावग्ग में १३-२३ और पाटिकवग्ग में २४-३४ सुत्त हैं। सीलक्खन्ध की कुछ पंक्तियाँ गाथाओं में हैं, कुछ गद्य में हैं। इसी प्रकार महावग्ग और पाटिकवग्ग में अधिकांश सुत्त गद्य-पद्य के मिश्रित रूप हैं।
विषय प्रतिपादन की दृष्टि से प्रथम सुत्त (ब्रह्मजालसुत्त) में शाश्वतवाद, नित्यताअनित्यता, उच्छेदवाद आदि का निरूपण किया गया है।५३ द्वितीय सुत्त (सामञ्जलसुत्त) में शील, समाधि और प्रज्ञा को विवेचित किया गया है।५४ इसी प्रकार महावग्ग भाग के २२वें सुत्त में कायानुपश्यना, वेदनानुपश्यना, चित्तानुपश्यना और धर्मानुपश्यना आदि का वर्णन
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