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________________ जैन एवं बौद्ध योग-साहित्य १०१ अथवा पूर्णज्ञान तक पहुँचने के मार्ग को प्रशस्त करनेवाला अनुपम ग्रन्थ है। बाद में इसी का सन् १९०२ में ही लावले पुंसे ने पेरिस से फ्रेंच अनुवाद प्रकाशित करवाया था। अब तो इसका इटालियन, जर्मन, हिन्दी आदि अनुवाद भी हो गया हैं। ___यह नौ अध्यायों में विभक्त है। जिसके अन्तर्गत प्रथम अध्याय में बोधिचित्त प्राप्त करने के लाभ का आख्यान है। १ द्वितीय अध्याय में पाप का स्वीकरण एवं बुद्ध की पूजा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय अध्याय में धर्म-दीक्षा से पूर्व आवश्यक आधारभूत तत्त्वों के अवलम्बन तथा मूल्य पर रोशनी डाली गयी है। चतुर्थ अध्याय में पूर्व में अर्जित बोधिचित्त की विचारधारा की रक्षा तथा नित्य आचार के पालन पर बल दिया गया है। पंचम अध्याय में साधक के कर्तव्याकर्तव्य तथा आचार के सतत् चिन्तन की आवश्यकता पर बल दिया गया है।५२ ऐसे ही षष्ठ अध्याय में क्षान्तिपारमिता, सप्तम अध्याय में वीर्यपारमिता, अष्टम अध्याय में ध्यानपारमिता तथा नवम अध्याय में साधना की चरम भूमि प्रज्ञापारमिता का निरूपण किया गया है। अर्थविनिश्चयसूत्र ___ इस ग्रन्थ के मूल लेखक कौन हैं और इसका रचनाकाल क्या है? इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। हाँ! इस ग्रन्थ की उपलब्धि का श्रेय महामहिम पं० राहल सांकृत्यायन को जाता है। ऐसे ८वीं शताब्दी में नालन्दा के प्रौढ़ भिक्षु एवं आचार्य वीर श्रीदत्त द्वारा की गयी इसकी निबन्धन नामक टीका उपलब्ध होती है। इसके अतिरिक्त दो प्राचीन संस्करण जिनकी भाषा तिब्बती है, उपलब्ध होते हैं। प्रथम की व्याख्या तिब्बती भाषा में तथा द्वितीय की व्याख्या में तिब्बती के साथ-साथ संस्कृत भी है। इस ग्रन्थ की व्याख्याविधि प्रश्नोत्तर है। इसके अन्तर्गत ध्यान एवं उसके अंग पर विशेष प्रकाश डाला गया है। प्रतिपाद्य विषय निम्नलिखित हैं- स्कन्ध, उपादान स्कन्ध, धातु, आयतन, प्रतीत्यसमुत्पाद, आर्यसत्य, इन्द्रिय, आरूप्य समापत्ति, ब्रह्मविहार, प्रतिपत् , समाधि, सम्यक् प्रहाण, ऋद्धिपाद, पञ्चेन्द्रिय, बल, बोध्यंग, अष्टांगिकमार्ग, आनापानस्मृति, स्रोतापत्ति, तथागतबल, वैशारध, प्रतिसंवित, महापुरुष लक्षण और अनुव्यंजन। अभिधर्मामृत अभिधर्मामृत आचार्य घोषक द्वारा रचित ग्रन्थ है, जो मूलत: चीनी भाषा में अनुदित है। यह सर्वप्रथम विश्वभारती शान्तिनिकेतन से शान्तिभिक्षु शास्त्री के निर्देशन में संस्कृत भाषा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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