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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन (अर्धमागधी) की है । परन्तु इस ग्रन्थ के रचयिता के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। जैसा कि पं० दलसुखभाई मालवणिया का मन्तव्य है कि ध्यानशतक के रचयिता के रूप में यद्यपि जिनभद्रगणि के नाम का निर्देश देखा जाता है, पर वह सम्भव नहीं दिखता है। इसका कारण यह है कि हरिभद्र सूरि ने अपनी आवश्यकनियुक्ति की टीका में समस्त ध्यान को शास्त्रान्तर स्वीकार किया है तथा समस्त गाथाओं की व्याख्या स्वयं की है, पर यह किसके द्वारा रची गयी है इसके सम्बन्ध में उन्होंने कुछ भी नहीं कहा है। इसके अतिरिक्त हरिभद्र सूरि की उक्त टीका पर टिप्पणी लिखनेवाले आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने भी उसके रचयिता के विषय में कोई टिप्पणी नहीं की । २१ ९२ इस ग्रन्थ के अन्तर्गत सर्वप्रथम ध्यान के दो प्रकारों का वर्णन किया गया है। पुनः उन दो ध्यानों (प्रशस्त एवं अप्रशस्त) के पुनः दो-दो भेद बताये गये हैं, २२ जिनमें प्रथम दो ध्यान आर्त और रौद्र को कषाय तथा वासनाओं को बढ़ाने का कारण माना गया है तथा अन्य दो ध्यान धर्म और शुक्ल को मोक्ष का कारण माना गया है। धर्मध्यान मोक्ष का सीधा कारण नहीं है, बल्कि वह तो शुक्लध्यान का सहयोगी मात्र है। शुक्लध्यान ही मोक्ष का सीधा कारण है। इनके अतिरिक्त इसमें आसन, प्राणायाम, अनुप्रेक्षा आदि का भी वर्णन है । इष्टोपदेश आचार्य पूज्यपाद विरचित योग सम्बन्धी यह दूसरा ग्रन्थ है। जो देखने में लघु है, किन्तु महत्त्वपूर्ण है। इसमें मात्र ५१ श्लोक हैं जिनकी भाषा संस्कृत है। इसमें उन्होंने योग से परमानन्द की उत्पत्ति का निर्देश करते हुए लिखा है आत्मानुष्ठाननिष्ठस्य, व्यवहारबहिः स्थितेः । जायते परमानन्दः कश्चिद् योगेन योगिनः ॥ ४७॥ अर्थात् लोक व्यवहार से निवृत्त होकर अपनी आत्मा में स्थित रहनेवाले योगी के हृदय में योग द्वारा एक अनिर्वचनीय परमानन्द उपलब्ध होता है। साथ ही इसमें ध्यान के चार प्रकारों का भी वर्णन किया गया है। साधक की उन भावनाओं का भी उल्लेख है जिनके चिन्तन-मनन से वह अपनी चंचल वृत्तियों को त्यागकर अध्यात्ममार्ग में लीन होता है। इसकी रचना का काल वि० सं० की पाँचवी - छठी शती माना जाता है। परमात्मप्रकाश यह ग्रन्थ आचार्य योगीन्दुदेव द्वारा रचित है। योग साधना का वर्णन करनेवाले For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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