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________________ ९० जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन गया है कि मनुष्य में ज्ञान का होना आवश्यक है तथा आत्मज्ञान के बिना तप करना व्यर्थ है, क्योंकि उसके बिना मनुष्य को मुक्ति नहीं मिल सकती । " इस ग्रन्थ पर आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा संस्कृत टीका लिखी गयी है। मूलाचार मूलाचार के रचयिता वट्टकेराचार्य माने जाते हैं। इसके टीकाकारों में श्री वसुनन्दि सिद्धान्तचक्रवर्ती आचार्य तथा मेघचन्द्राचार्य के नाम आते हैं। ११ प्रस्तुत ग्रन्थ में बारह अधिकार तथा १२५२ गाथाएँ हैं । इसके पाँचवें अधिकार में तप, आचार आदि की प्ररूपणा करते हुए आभ्यन्तर तप के जो छः भेद निर्दिष्ट किये गये हैं उनमें पाँचवाँ ध्यान है।१२ यहाँ ध्यान के चारों प्रकारों को निरूपित करते हुए आर्त और रौद्रध्यान को अप्रशस्त तथा धर्म एवं शुक्ल ध्यान को प्रशस्त बताया गया है। १३ धर्म और शुक्ल को ही मोक्ष का हेतु कहा गया है। आचार्य वट्टकेर का समय लगभग प्रथम द्वितीय शती माना जाता है। परन्तु कुछ विद्वान् मूलाचार को कुन्दकुन्दाचार्य की कृति मानते हैं। उनका मानना है कि कुन्दकुन्द ही वट्टकेराचार्य के नाम से जाने जाते थे। जैसा कि 'मूलाचार' पर लिखी गयी वसुनन्दिरचित 'आचारवृति' नामक टीका से यह तथ्य प्रामाणिकता की ओर अग्रसर होता है। ग्रन्थ के समापन पर उन्होंने लिखा है 'इति मूलाचारविवृत्तौ द्वादशोध्यायः इति कुन्दकुन्दाचार्यप्रणीतमूलाचाराख्यविवृतिः । कृतिरियं वसुनन्दिनः श्री श्रमणस्य । ' भगवती आराधना इस ग्रन्थ के रचनाकार आचार्य शिवार्य हैं। यद्यपि भगवती आराधना का यथार्थ नाम तो 'आराधना' ही है, भगवती तो उसके प्रति आदर भाव व्यक्त करने के लिए प्रयोग किया गया है। इसके टीकाकार श्री अपराजित सूरि ने अपनी टीका के अन्त में इसका नाम आराधना ही दिया है। ३६ भगवती आराधना के आधार पर ही आचार्य देवसेन ने 'आराधनासार' ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ पर सर्वप्रथम टीका अपराजित सूरि ने की है जो विजयोदया टीका के नाम से उपलब्ध है। दूसरी टीका मूलाराधना दर्पण है जो प्रसिद्ध ग्रन्थकार पं० आशाधर द्वारा रचित है। इसकी गाथा सं० में विभिन्नता पायी जाती है। किसी में २१७० है तो किसी में २१६४, ३७ लेकिन देवेन्द्र मुनि शास्त्री ने अपने ग्रन्थ में २१६६ गाथाओं का वर्णन किया है । ३८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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