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________________ जैन एवं बौद्ध योग-साहित्य योग-विद्या भारतीय चिन्तन परम्परा की विशेषता रही है। यही कारण है कि जैनाचार्यों ने योग के सम्बन्ध में निपुण साहित्य की रचना की । योग से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण जैन ग्रन्थों का यहाँ परिचय दिया जा रहा है। मोक्षपाहुड इस ग्रन्थ के रचयिता आचार्य कुन्दकुन्द माने जाते हैं जिनका समय लगभग ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी के आस-पास माना जाता है। मोक्षपाहुड जैन योग विषयक एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध है। इसमें १०६ गाथाएँ हैं। आत्मा के विभिन्न स्वरूपों का परिचय कराते हुए इसमें बताया गया है कि मिथ्यात्व के कारण जीव की क्या दशा होती है? गृहस्थ और मुनि दोनों ही प्रकार के साधकों की साधना का विधिविधान इसमें वर्णित है। आत्मध्यान में प्रवृत होने के लिए कषायों के आवरण को हटाने का उपदेश दिया गया है, क्योंकि इससे सभी आस्रवों का निरोध होता है और संवर-निर्जरा से संचित कर्मों का क्षय होता है। सामान्यत: ऐसा देखा जाता है या ग्रन्थों में पढ़ने को मिलता है कि अनेक साधक विषय-वासना से मोहित होकर साधना-पथ से च्युत हो जाते हैं। इसलिए साधक को ध्यान-साधना में सावधान करते हुए पंचमहाव्रत, तीन गुप्ति, पाँच समिति आदि चारित्र का वर्णन किया गया है। साथ ही श्रावक-धर्म का वर्णन भी किया गया है। आचार्य कुन्दकुन्द की इस रचना को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी रचना योगशतक के रूप में की गयी है। संभवत: इसीलिए इसे योगपाहुड भी कहा जाता है। इसमें प्राणायाम को छोड़कर यम, नियमादि सात अंगों का वर्णन भी मिलता है। इस ग्रन्थ की टीका श्रुतसागरसूरि जी ने की है। समाधितन्त्र इस नाम से जैन-परम्परा में तीन आचार्यों के ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं-आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य पूज्यपाद और यशोविजय गणि। इन तीनों आचार्यों ने एक ही नाम से ग्रन्थों की रचना की है। अन्तर इतना ही है कि तीनों आचार्यों का कालक्रम आगे-पीछे है। आचार्य कुन्दकुन्द का समय ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी माना जाता है तो आचार्य पूज्यपाद का समय विक्रम की पाँचवी-छठी शती है, परन्तु विषयवस्तु की दृष्टि से कोई विशेष अन्तर नहीं है। बहुत कुछ साम्य के अतिरिक्त उनकी अनेक गाथाओं का शब्दश: अथवा किञ्चित् भेद सहित अनुवाद पाया जाता है। इसमें ध्यान तथा भावना के साथ-साथ आत्मतत्त्व को पहचानने के उपायों का सुन्दर एवं विस्तृत विवेचन किया गया है। कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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