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नेमिदूतम्
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करते हुए, स्मितानां पुष्पलावीमुखानाम् - प्रसन्नचित्त फूल तोड़ने वाली महिलाओं के मुखों का छायादानात् —- शोभा वितरण करने के कारण, क्षणपरिचितः कुछ समय के लिए परिचित होकर, मुहूर्तं तिष्ठे:5:- क्षण भर
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रुक जाना ।
अर्थ: ( हे नाथ ! ) मार्गजनित श्रम से पीड़ित तुम उस केलिगिरि के श्रेष्ठ वृक्षों से युक्त उद्यान में, फूलों को तोड़ने वाली महिलाओं द्वारा उपहार स्वरूप लाए गए अनेक प्रकार के पुष्पों की सुगन्धि को ग्रहण करते हुए प्रसन्न होकर, प्रसन्नचित्त फूल तोड़ने वाली महिलाओं के मुखों को, छाया प्रदान करने के कारण ( शोभा वितरण करने के कारण ) कुछ समय के लिए परिचित होकर, क्षण भर वहाँ ( केलिगिरि के उद्यान में ) रुक जाना ।
टिप्पणी पुष्पलावी – पुष्प उपपदपूर्वक छेदनार्थक 'लू' धातु कर्म में 'कर्मण्यण्' सूत्र से अण् प्रत्यय तथा वृद्धि करके स्त्रीत्व की विवक्षा में 'टिड्ढाणञ्' इत्यादि सूत्र से 'ङीप् ' करके पुष्पलावी शब्द बनता है और 'कुगतिप्रादयः' से पुष्प और लावी का समास हुआ है ।
दृष्ट्वा रूपं तव निरुपमं तत्र पोनस्तनीनां,
तासामन्तर्मनसिजरसोल्लासलीलालसानाम् ।
कर्णाम्भोजोपगत मधुकृत् सम्भ्रमोद्यद्विलास
ललापाङ्गर्यदि न रमसे लोचनैर्वञ्चितोऽसि ॥ २६ ॥ अन्वयः - ( हे नाथ ! ) तत्र, तव, निरुपमं रूपम्, दृष्ट्वा, तासाम्, पीनस्तनीनाम्, अन्तर्मनसिजरसोल्लासलीलालसानाम्, कर्णाम्भोजोपगतमधुकृत्, सम्भ्रमोद्यत्, लोलापाङ्गैः, विलासैः, लोचनैः, यदि, न, रमसे, ( तहि ), वञ्चितः, असि ।
दृष्ट्वा रूपमिति । तव निरुपमं रूपं दृष्ट्वा हे नाथ ! तस्मिन् क्रीडापवर्ते पुष्पावचायिकाः भवतः नेमे: अनुपमेयं रूपमवलोक्य । तासां पीनस्तनीनामन्तर्मनसिजरसोल्लासलीलालसानां पुष्पावचायिकांनां पीवरपयोधराणां चित्ते कामरसोल्लासलीलामन्थरानाम् । कर्णाम्भोजोपगतमधुकृत् श्रोत्रपद्मप्राप्तभ्रमरकृत्, संभ्रमोद्यत् भयमुदयं प्राप्नुवन्तो वा । लोलापाङ्गैः चञ्चल - कटाक्षैः विलासः रतिभावद्योतको वनितानां विलास इत्यर्थः । लोचनैः यदि न रमसे नेत्रः चेत् त्वं न क्रीडति तर्हि, वञ्चितोऽसि प्रतारितोऽसि इत्यर्थः ॥ २९ ॥
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