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________________ नेमिदूतम् [ २९ अन्वयः -(हे नाथ ! ), चेत्, स्वपुरगमने, ते, उत्साहः, न, ( तहि ) अहम्, तव, एतोवृद्धौ पितरौ, च तज्जनाः, ते अमी त्रयः, त्वया, वियुक्ता; म्लानाब्जस्याः, कलुषतनवः, ग्रीष्मतोयाशयाभाः ( इव ), कतिपयदिनस्थायि, हंसाः, दशार्णाः, सम्पत्स्यन्ते । ___नोत्साहस्ते इति । चेत् स्वपुरगमने ते उत्साहः न हे नाथ ! यदि निजद्वारिकायां गन्तुं तव उत्कण्ठा न भवति, तर्हि । अहं तव एतौवृद्धौ पितरौ राजीमती भवतः इमौ स्थविरौ माता च पिता च इति पितरौ ( द्वन्द्वसमासः )। च तज्जनास्ते अमीत्रयः तथा तयोः सेवकलोकाः तव इमे त्रयः । त्वयावियुक्ता नेमिना वियोगिनः सन्तः । म्लानाब्जस्याः कलुषतनवः संकोचमासादितानि पंकजानिव मुखानि इत्यर्थः, त्वद्वियोगेन स्नानाद्यकरणात् मलिना शरीराणि । ग्रीष्मतोयाशयाभाः निदाघजलाशजयकान्ति इव । कतिपय दिनस्थायि हंसाः किञ्चिदिवसस्थायि आत्मनः, संपत्स्यन्ते भविष्यन्ति । दशार्णाः दश ऋणानि ( दुर्गभूमयः ) येषां ते, त्वद्विरहे दशापि प्राणान् त्यक्ष्यन्तीत्यर्थः । पक्षान्तरेग्रीष्मजलाशयापि जलशोषाद् अपृथुला भवन्ति, राजहंसाश्च कतिपयदिवसं यावत् स्थास्यन्ति ।। २५ ॥ शब्दार्थः - चेत् -यदि, स्वपुरगमने-अपनी नगरी द्वारिका गमन में, ते-तुम्हारा ( नेमि का ), उत्साहः-उत्कण्ठा, न-नहीं, तो, अहम् -मैं (राजीमती), तव-तुम्हारे, एतौ वृद्धौ पितरौ-दोनों वृद्ध माता पिता, चतथा, तज्जना:-सेवकजन, ते अमीत्रय:-ये तीनों, त्वया वियुक्ता-तुमसे अलग ( तुम्हारे वियोग में ), म्लानाब्जस्याः-मलिन हुए कमल के समान मलिन मुख, कलुषतनवः-स्नानादि के अभाव में गन्दे शरीर वाले, ग्रीष्मतोयाशयाभा:-ग्रीष्मकालीन जलाशय की शोभा की तरह, कतिपयदिनस्थायिहंसाः-जहाँ हंस (प्राण ) कुछ दिनों तक रह सकते हैं ऐसे, संपत्स्यन्तेहो जायेंगे। . अर्थः - (हे नाथ ! ) यदि अपनी द्वारिका नगरी गमन में तुम्हारा उत्साह नहीं है तो, मैं ( राजीमती ), तुम्हारे वृद्ध माता-पिता तथा तुम्हारे सेवकजन, ये तीनों तुम्हारे वियोग में मुरझाये कमल के समान मलिन मुख तथा स्नानादि के अभाव में कलुषित शरीर वाले हो जायेंगे, ऐसे में ग्रीष्मकालीन दशार्ण देश की जलाशय की कान्ति के सदृश जहाँ राजहंस कुछ दिन तक ही रह सकते हैं तद्वत् हम लोगों के शरीर में भी प्राण कुछ दिन तक ही रह सकता है, अर्थात् हम सभी अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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