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________________ २८ ] नेमिदूतम् अन्धयः - धूतानिद्राऽर्जुनपरिमलोद्गारिणः, विरहिहृदयोन्माथिभिः, ये जलदमरुतः, पान्थसार्थान्, वेश्मसंदर्शनोत्कान्, कुर्वीरन्, तैः, संस्पृष्ट:, प्रत्युद्यातः, भवान्, स्वाम्, पुरीम्, कथमपि, आशु, गन्तुम्, न, व्यवस्येत् । धूतानिद्रेति । धूतानिद्राऽर्जुनपरिमलोद्गारिणः प्रकम्पिताप्रफुल्ला ये अर्जुनाअर्जुनतरवस्तेषां शौरभमुद्गिरन्तीत्येवं शीला धूतानिद्रार्जुनपरिमलोद्गारिणः । विरहिहृदयोन्माथिभिः वियोगि चेतांसि उन्मथ्नन्तीत्येवं शीलाविरहिहृदयोउन्मथितः वायुभिरिति । ये जलदमरुतः मेघवायवः, पान्थसार्थान् वेश्मसंदर्शनोत्कान् पथिकसमूहान् गृहावलोकनोत्सुकान् कुर्वीरन् कुर्वन्ति इत्यर्थः । ते संस्पृष्ट: वियोगिचित्तोन्माथिमिः वायुभिः आश्लिष्ट: । प्रत्युद्यातः प्रत्युद्गतः सन्, भवान् स्वां पुरीं त्वं निजद्वारिकाम् । कथमपि आशु यथा कथञ्चित् त्वरितम्, गन्तुं न व्यवस्येत् द्वारिकायां प्रयातुं न प्रयत्नं कुर्यात्, अपितु कुर्यादेवेति भावः ।। २४ ॥ शब्दार्थः - धूतानिद्राऽर्जुनपरिमलोद्गारिणः- खिले हुए अर्जुन पुष्प विशेष की सुगन्धि को प्रगट करने वाला, विरहिहृदयोन्माथिभिःविरहिजन के चित्त को मथने वाले वायु से, ये जलदमरुतः - जो मेघवायु, पान्थसार्थान् -पथिक समूह को, वेश्मसंदर्शनोत्कान्-घर जाने के लिए उत्सुक, कुरिन्- करता है, तैः संस्पृष्टः-विरहिजन के चित्त को मथने वाले उस वायु से आश्लिष्ट, प्रत्युद्यातः-अगुवानी किया जाता हुआ; भवान्आप ( नेमि ), स्वाम्-अपनी, पुरीम्,-नगरी ( द्वारिका को ), कथमपिकिसी तरह, आशु-शीघ्र, गन्तुम्-जाने के लिए, न-नहीं, व्यवस्येत्प्रयत्न कीजियेगा। अर्थः - ( हे नाथ ! ) खिले हुए अर्जुन पुष्प की सुगन्धि को प्रकट करने वाले, विरहिजन के चित्त को मथने वाले वायु द्वारा, जो मेघ वायु पथिक समूहों को अपने घर जाने के लिए उत्सुक करता है, ऐसे विरहिजन के चित्त को मथने वाले वायु से आश्लिष्ट, अगुवानी किये जाते हुए आप अपनी द्वारिका नगरी को, किसी तरह शीघ्र जाने का प्रयत्न नहीं करेंगे। नोत्साहस्ते स्वपुरगमने चेद्वियुक्ता त्वयाऽहं, वृद्धावेतौ तव च पितरौ तज्जनास्ते त्रयोऽमी । म्लानाब्जस्याः कलुषतनवोगोष्मतोयाशयाभाः, संपत्स्यन्ते कतिपयदिनस्थायिहंसा दशाः ॥२५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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