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नेमिदूतम्
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आलोक्यनेमिति । तरलतडिता-चपलाविद्युत्तया। आक्रान्तनीलाब्दमालं आश्लिष्टा कृष्णमेघश्रेणियस्मिन्स तम् इत्यर्थः। विकसाथिकाजातिजालं विस्तीर्णा मागधीपुष्पाणि तासां समूहो यस्मिन् स तम् । एनं प्रावृट्कालं एनं वर्षाकालम् । आलोक्य दृष्ट्वा, अन्तर्जाग्रद्विरहदहनः चित्ते परिस्फुरन् विरह एव अग्निर्यस्य सः । जीवितालम्बने प्राणधारणे, अहमिव मत्समानः, यः जनः यो जनः । पराधीनवृत्तिः परकृतजीवनः । अलं स्यात् समर्थः न भवेत्, न अन्यः न अपरः, कोऽपि स्वतन्त्रः जनः इत्यर्थः ॥ ८॥
शब्दार्थः - तरलतडिताऽऽक्रान्तनीलाब्दमालम्-चञ्चला विद्युत से आश्लिष्ट कृष्ण मेघसमूह, विकसाथिकाजातिजालम्-खिले हुए मालतीपुष्प समूह ( से युक्त ), एनं प्रावटकालम् - इस वर्षाकाल को, आलोक्य-देखकर, अन्तर्जाग्रद्विरहदहनः- हृदय में प्रज्वलित विरहाग्नि में जलते हुए, जीवितालंबनेप्राणधारण ( करने ) में, अहमिव-मेरी तरह, यः जनः-जो जन, पराधीनवृत्ति:-पराधीन जीवन वाला, अलं स्यात्-समर्थ न हो, न-नहीं, अन्यः-दूसरा । स्वतन्त्र जन )।
अर्थः - ( हे नाथ ! ) चञ्चला विद्युत ( कान्ति ) से युक्त काले मेघ समूहों ( तथा ) खिले हुए मालतीपुष्प समूहों से ( युक्त ) इस वर्षाकाल को देखकर हृदय में प्रज्वलित विरहाग्नि में जलते हुए, मेरी तरह जो जन पराधीन अर्थात्, मेरी तरह जिनकी जीविका दूसरे के अधीन है, वही अपना जीवन धारण ( करने ) में समर्थ नहीं हैं, न कि जो जन स्वतन्त्र हैं ( इसलिए हे नाथ ! आप द्वारिका चलें )।
टिप्पणी-जीवितालम्बने- श्रावण मास में काले मेघ समूहों को देखकर प्रियवियोग में जीवन धारण कर पाना कठिन हो जाता है । पराधीनवृत्तिःऐसे व्यक्ति जिनकी जीविका दूसरे के ऊपर निर्भर रहती है। राजीमती का पति नेमिनाथ पर्वत पर मोक्षोपाय में लगा हुआ, जबकि राजीमती की जीविका नेमिनाथ के अधीन ( आश्रित ) है। पराधीनवृत्तिः-वर्तनार्थक वृत धातु से भाव में क्तिन् प्रत्यय होने से 'वृत्ति' शब्द बनता है, 'परस्मिन्नधीनावृत्ति-पराधीनवृत्तिः।। अस्मादद्रेः प्रसरति मरुत्प्रेरितः प्रौढ़नाद
भिन्दानोऽयं विरहिजनताकर्णमूलं पयोदः।
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