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________________ नेमिदूतम् सिद्धेः सङ्गमिति । तत् पर्वतस्य । शिरोधिष्ठितस्य शिखरानेनिषण्णस्य । सिद्धेः संगं मोक्षस्य संयोगम् । समभिलषतः अभिकाङ्क्षत: नेमिनाथं दृष्ट्वा । विरहविधुरा पतिवियोगपीडिता। सा तन्वङ्गी नेमिनाथस्य जाया राजीमती । सम्मोहात् चित्त-वैकल्यात् प्राणनाथस्य नेमेः । अनुनयं प्रसादनम् । तं शैलराज पर्वतश्रेष्ठं रैवतकं प्रति इति भावः । द्रुतं शीघ्रम् । ययाचे याचयामास, पूर्वोक्तार्थमर्थान्तरन्यासेन प्रदर्शयति कामाऽर्तेति । हि यतः । कामाऽर्ताः माराऽऽकुलाः कामपीडिताः जनाः 'अयं चेतनः अयमचेतनः' इति विवेकशून्याः स्वभावेनैव भवन्ति इत्यर्थः । चेतनाऽचेतनेषु सजीव-निर्जीवेषु । प्रकृतकृपणाः औत्सर्गिकदर्याः ( भवन्ति ) । मदनेन व्याकुलीकृतानां कर्तव्याऽकर्तव्यविषयकविवेकशून्यत्वेन अचेतनमपि शैलराजं प्रति याचना नाऽनुपयुक्ता इति भावः । श्लोकेऽस्मिन् अर्थान्तरन्यासोपमालङ्कारः ॥ ५ ॥ शब्दार्थः - तत्-उस (पर्वत) के, शिरोधिष्ठितस्य-शिखर के अग्रभाग पर स्थित, सिद्धः-मोक्ष की, संगम्-संयोग, समभिलषतः - इच्छा करते हुए, विरहविधुरा-पतिवियोग से पीड़िता, सा तन्वङ्गी–वह दुबलीपतली शरीर वाली, सम्मोहात्-चित्त की विकलता के कारण, प्राणनाथस्य नेमे:-अपने स्वामी नेमि को, अनुनयम्-प्रसन्न करने की, तं शैलराजम्-उस पर्वतराज रैवतक से, द्रुतम्-शीघ्र, ययाचे-याचना की, हि-क्योंकि, कामाऽर्ताः-कामान्ध, चेतनाऽचेतनेषु-जीव और निर्जीव वस्तुओं के विषय में, प्रकृतकृपणा:--स्वाभाविक रूप से विवेक शून्य हो जाते हैं। अर्थः - उस (पर्वत) की ऊँची चोटी पर स्थित मोक्ष की कामना करते हुए ( अपने पति नेमिनाथ को देखकर ), पतिवियोगपीड़िता उस कृशाङ्गी राजीमती ने चित्त की विह्वलता के कारण अपने स्वामी नेमिनाथ को प्रसन्न करने की उस पर्वतराज रैवतक से शीघ्र ही याचना की, क्योंकि कामान्ध जन 'यह जीव है', 'यह अचेतन है', इस प्रकार के विवेक से शून्य स्वाभाविक रूप से हो जाते हैं। टिप्पणी- ययाचे-/याच्, लिट् लकार प्रथम पुरुष एक वचन । प्रकृतकृपणा:-यहाँ 'प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्' सूत्र से तृतीया होकर तृतीया तत्पपुरुष समास हुआ है । चेतनाचेतनेषु चेतनाश्च अचेतनाश्च, चेतनाऽचेतना. तेषु इति द्वन्द्वसमासः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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