SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नेमिदूतम् विकसितवासकसुमनसुगन्धिभिः मत्तभ्रमराणां ध्वनिभिः । पतिमनुगतां भारमनुप्राप्ताम् इति भावः । दुखाता-पीडितां पतिवियोगपीडिता इति भावः । साध्वीं, शोभनशीलाम् । तां-राजीमतीम् । आश्वास्य इव प्रीतः-प्रहृष्ट: ( सन् ) प्रीतिप्रमुखवचनं-स्नेहप्रधानोक्ति यथास्यात्तथा इति । स्वागतं-शुभाममनं, व्याजहार-उवाच, राजीमत्याः स्वागतञ्चकारेत्यर्थः ॥ ४॥ शब्दार्थः - तत्पदन्यासपूतः-उसके चरणन्यास से पवित्र (हुआ), अद्रिः-पर्वत ने, शिशिरसलिलासारसारैः समीरैः-शीतल जल की तेज वर्षा करते हुए वायु से, स्फुटितकुटजामोदमत्तालिनादैः-विकसित हुए (खिले हुए ) पर्वतीय पुष्पों की सुगन्धि से मदोन्मत्त भ्रमरों की ( गुञ्जन ) ध्वनि से, पतिमनुगताम्-पति का अनुसरण करने वाली ( पतिव्रता ), दुःखार्ताम्-पतिवियोग में पीडिता, साध्वीम्-सुन्दरी, ताम्-उस ( राजमती ) को, आश्वास्येव-सान्त्वना देते हुए के समान, प्रीतः-प्रसन्न, प्रीतिप्रमुखवचनम्-प्रेमपूर्ण वाक्यों के द्वारा, स्वागतम्-शुभागमन, व्याजहार-कहा। __ अर्थः - नेमिनाथ के चरण रखे जाने से पवित्र ( हुए ) पर्वत ने शीतल जल की तेज वर्षा करते हुए वायु द्वारा, खिले हुए पर्वतीय पुष्पों की सुगन्धि से मदोन्मत्त भौरों की गुञ्जन ध्वनि द्वारा, पति का अनुगमन करने वाली पतिवियोग में पीड़िता सुन्दरी राजीमती को सान्त्वना देते हुए के समान, प्रसन्न होकर प्रेमपूर्ण वाक्यों द्वारा उसका स्वागत किया। टिप्पणी- आसार-आ+स+घञ् प्रत्यय । किसी वस्तु की मूसलाधार बौछार । स्फुटित-स्फुट+क्त प्रत्यय । आमोदः - आ+ मुद्+घञ् प्रत्यय । अद्रिः - अद् + क्रिन-पहाड़ । सिद्धेः संगं समभिलषतः प्राणनाथस्य नेमेः, ___सा तन्वङ्गी विरहविधुरा तच्छिरोधिष्ठितस्य । तं सम्मोहाद् द्रुतमनुनयं शैलराजं ययाचे, कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनेषु ॥५॥ अन्वयः -- तत्, शिरोधिष्ठितस्य, सिद्धेः सङ्गम्, समभिलषतः, विरहविधुरा, सा तन्वङ्गी, सम्मोहात्, प्राणनाथस्य नेमेः, अनुनयम्, तं शैलराजम्, द्रुतम्, ययाचे। हि कामाऽर्ताः, चेतनाऽचेतनेषु प्रकृतिकृपणाः ( भवति )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy