________________
नेमिदूतम् छोड़कर, मोक्षकामः-मोक्ष की इच्छा से; स्निग्धच्छायातरुषु-घने नमेरु वृक्षों से युक्त, रामगिर्याश्रमेषु-रामगिरि ( नामक पर्वत के ) आश्रमों में, वसतिम्-निवास-स्थान, चकार-बनाया।
अर्थः - जीवधारियों की रक्षा में आसक्त चित्त वाले श्रीमान् नेमिनाथ ने सांसारिक विषयवासनाओं से पराङ्मुख हो, समस्त स्वजनों को, अनुचर वर्ग के साथ सभी सुखों को तथा उग्रसेन की पुत्री राजीमती को छोड़कर, मुक्ति की इच्छा से घने नमेरु वृक्षों से युक्त रामगिरि नामक पर्वत के आश्रमों में अपना निवास स्थान बनाया।
टिप्पणी-प्राणित्राणप्रवणहृदयः-नेमिनाथ के पिता समुद्रविजय ने अपने पुत्र का विवाह महाराज उग्रसेन की सुन्दरी-विदुषी कन्या राजीमती से निश्चित किया। राजसी वैभवानुसार नेमिनाथ के विवाहार्थ बारात भी गई। गिरिनगर में पशुओं की करुण चीत्कार को सुनकर नेमिनाथ की जिज्ञासा बढ़ गई। जब उन्हें ज्ञात हुआ कि ये सारे पशु बारातियों के भोजनार्थ बलि हेतु लाए गए हैं तो मानसिक उद्वेलन से उनका मस्तिष्क काँप उठा तथा उसके निदान हेतु विवाह-बन्धन में बँधने की अपेक्षा वे वन को चले गये। सा तत्रोच्चः शिखरिणि समासीनमेनं मुनीशं,
नासान्यस्तानिमिषनयनं ध्याननिर्धतदोषम् । योगासक्तं सजलजलदश्यामलं राजपुत्री,
वप्रकोडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ॥ २॥ अन्वयः - सा राजपुत्री, तत्र, ध्याननि तदोषम्, नासान्यस्तानिमिषनयनम्, योगासक्तम्, उच्चैः शिखरिणि, समासीनम्, वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयम्, सजलजलद-श्यामलम्, एनं मुनीशम्, ददर्श ।
सा तत्रोच्चैरिति । सा राजपुत्री-अथ नेमिनाथं रेवताद्रौ सम्प्राप्तं श्रुत्वा स्वप्रियमिलनगाढोत्कण्ठया व्याकुलमानसा स्वपित्रादिभिर्वार्यमाणापि प्रिय सखी सहायात् राज्ञःउग्रसेनस्य पुत्री-नेमिनाथस्य प्रिया राजीमतीत्यर्थः । तत्र-पर्वते। ध्याननिद्धृतदोषं ध्यानेन पराकृता रागद्वेषादयोः । नासान्यस्तानिमिषनयनंनासिकायां स्थापिते ध्यानार्थं निमेषरहितं नेत्रम् । योगासक्तं-मोक्षोपायः श्रद्धान{ ज्ञानाचरणात्मकस्तत्रासक्तम् आलीनम् इति । उच्चैः शिखरिणि-अत्युग्नतपर्वते ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.