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भूमिका
यत्राशोकः कलयति नवस्तोरणाभां तथान्योहस्तप्राप्यस्तबकनमितो
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चरित्र-चित्रण
द्वारा उदात्त रूप में
प्रस्तुत
नेमिनाथ नेमिनाथ का चरित्र कवि के किया गया है । बारातियों के निमित्त बँधे भक्ष्य पशुओं को देखकर उनका हृदय करुणा से भर जाता है तथा इस संसार के प्रति विरक्ति हो जाती है । फलस्वरूप इस संसार की असारता को देखकर वे रामगिरि पर योगाभ्यास और तपश्चर्या में लग जाते हैं । नेमिनाथ को इस पवित्र प्रयत्न से हटाने में न तो बन्धु बान्धवों का मोह सफल हुआ और न ही त्रैलोक्यसुन्दरी राजीमती का रूप तथा न तो पितृ-आदेश ही ।
राजीमती
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बालमन्दारवृक्षः ॥ ८२ ॥
राजीमती उग्रसेन की पुत्री थी । त्रैलोक्यसुन्दरी राजीमती नेमि द्वारा छोड़ दिये जाने पर नेमि के विरह में रामगिरि पर चली जाती है; किन्तु उसने इसके लिए पहिले अपने पिता की आज्ञा प्राप्त की हैप्राप्यानुज्ञामथ पितुरियं त्वां सहास्माभिरस्मिन्,
सम्प्रत्यद्री शरणमबला प्राणनाथं प्रपन्ना ।। १०९ ॥
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काम से सन्तप्त होने पर भी उसने भारतीय नारी की मर्यादा का अतिक्रमण नहीं किया; अपितु अपनी व्यथा का कथन अपने सखी के मुख से नेमि के सम्मुख करवाती है—
त्वामुत्कण्ठाविरचितपदं मन्मुखेनेदमाह ॥ ११० ॥
कवि के द्वारा राजीमती का पतिव्रता रूप प्रदर्शित किया गया है । राजी ती का विवाह नेमि के साथ हुआ नहीं था, अपितु राजीमती नेमि को हृदय से पति मान चुकी थी । इसीलिए माता के द्वारा अनेक प्रकार से समझाने के बाद भी वह अपने स्वामी नेमि के पास जाती है और वहाँ वह एक पतिव्रता नारी की तरह पति का अनुगमन करती हुई परिव्रज्या हो जाती है तथा उस धर्म को स्वीकार कर अपने पति के द्वारा कभी न समाप्त होने वाले परमानन्द का भोग करती है—
तामानन्दं शिवपुरि परित्याज्य संसारभाजां
भोगानिष्टानभिमतसुखं भोजयामास शश्वत् ।। १२५ ।।
शिवा राजीमती की माता का नाम है । शिवा का जो रूप
शिवा कवि द्वारा प्रस्तुत किया गया है, उससे यही स्पष्ट होता है कि जननी शिवा
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