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________________ ४० ] नेमिदूतम् तथा राजीमती को अभिलषित शाश्वत् सुखों का भोग कराया तामानन्दं शिवपुरि परित्याज्य संसारभाजां, भोगानिष्टानभिमतसुखं भोजयामास शश्वत् ॥ १२५ ॥ नेमिदत के उक्त दोनों श्लोकों के द्वारा कवि ने इस काव्य में नेमि को एक शान्ति-दुत के रूप में प्रस्तुत किया है। वस्तुत: नेमि ही इस काव्य में शान्ति-दूत के रूप में अवतरित हुए हैं, जिन्होंने सांसारिक भोगासक्त राजीमती को भी मुक्ति रूपी शाश्वत् सुख का सन्देश देकर उसको मुक्ति मार्ग पर प्रवृत्त कराया, अर्थात् मुक्ति प्राप्ति हेतु राजीमती भी उसी पर्वत पर नेमि के साथ ध्यानस्थ हो गई। यहां यह शंका उचित नहीं है कि उक्त दो श्लोकों के आधार पर इसे दूतकाव्य नहीं कहा जा सकता, क्योंकि रात्रि में अन्धकार को दूर करने के लिए एक चन्द्र की ही आवश्यकता होती है, अर्थात् घनीभूत अन्धकार को रात्रि में अकेले चन्द्र ही दूर कर देता है न कि करोड़ों की संख्या में आकाश-स्थित तारा समूह । यही स्थिति नेमिद्त में राजीमती के सखी द्वारा कहे गये वचनों की भी समझनी चाहिए। ___ अब, कहने की आवश्यकता नहीं, नेमिदूत को गीतिकाव्य के दो भेदों में से 'दतकाव्य' की श्रेणी में ही रखना उचित है। इसके लिए किसी अन्य लर्क का कोई अवसर नहीं। नेमिदूतम् का रस नेमिदत का प्रधान रस 'शान्त' है, जिसकी योजना प्रथम श्लोक में कर दिया गया है - प्राणित्राणप्रवणहृदयो बन्धुवर्ग समग्रं, हित्वा भोगान् सह परिजनैरुग्रसेनात्मजां च । श्रीमान्नेमिविषयविमुखो मोक्षकामश्चकार, स्निग्धच्छायातरुषु वसति रामगिर्याश्रमेषु ॥ १॥ पुनः इसका चरमोत्कर्ष निम्न श्लोकों में हुआ हैतत्सख्योक्ते वचसि सदयस्तां सतीमेकचित्तां, सम्बोध्येशः सभवविरतो रम्यधर्मोपदेशैः । चक्रे योगान्निजसहचरी मोक्षसोख्याप्तिहेतोः, केषां न स्यादभिमतफला प्रार्थना युत्तमेषु ॥ १२४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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