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________________ भूमिका [ ३३ देखकर 'विजयमणि' के मन में अपने गुरु के पास सांवत्सरिक क्षमापण सन्देश भेजने का विचार होता है तथा वे सन्देशवाहक के रूप में चन्द्रमा का स्वागत करके चन्द्रमा से दौत्य कार्य सम्पादन करने के लिए कहते हैं । काव्य शान्तरस प्रधान तथा प्रसाद गुण युक्त है और वर्ण्य विषय नवीन है। इसके अतिरिक्त जैन कवि 'जम्बू' रचित 'इन्दुदूत' का उल्लेख 'जिनरत्नकोश' ( पृ० ४६४ ) में मिलता है, किन्तु वर्ण्य विषय अज्ञात है । चन्द्रदूतम् यह खरतरगच्छीय कवि 'विमल कीर्ति' की ( १६८१ विक्रमी ) रचना है । कवि ने इसमें १४१ श्लोकों में चन्द्र को शत्रुञ्जय जानकर ऋषभदेव की वन्दना के निमित्त भेजा है । इसका प्रकाशन वर्ष विक्रम संवत् २००९ है । इसके अतिरिक्त 'जिनरत्न कोश' ( पृ० ४६४ ) में 'विनयप्रभ' प्रणीत 'चन्द्रदूत' का उल्लेख किया गया है, परन्तु ग्रन्थ अनुपलब्ध है। चेतोदूतम् किसी अज्ञात जैनाचार्य की इस रचना के १२९ पद्यों में चित्त को दूत बनाकर गुरु के पास विज्ञप्ति प्रेषण किया गया है । यह काव्य 'आत्मानन्द सभा', भावनगर से प्रकाशित है । जैनमेघदूतम् मेघदूत के पद्यों की समस्यापूर्ति वाले इन दूतकाव्यों को छोड़कर जैन कवियों की इस विषय में स्वतन्त्र रचनायें भी प्राप्त होती हैं । ऐसी रचनाओं में महाकवि " मेरुतुंग " रचित 'जैनमेघदूत' का स्थान महत्त्वपूर्ण है । इसके प्रतिपाद्य विषय का संक्षिप्त परिचय पहिले दिया जा चुका है । नेमिदूतम् इस काव्य का वर्णन आगे किया जायेगा, इसलिए यहाँ इसका वर्णन नहीं किया जा रहा है । १. 'जैनमेघदूतम्' के प्रणेता महाकवि 'मेरुतुङ्ग' ' प्रबन्धचिन्तामणि' के प्रणेता 'मेरुतुङ्ग' से पृथक् व्यक्ति हैं ( रचनाकाल १३६१ विक्रमी = ईस्वी १३०४ ) तथा उनसे लगभग अस्सी वर्ष पीछे उत्पन्न हुए । इनका समय पद्दावली के आधार पर सन् १३४६ - १४१४ तक माना जाता है । फलतः इस काव्य का रचनाकाल १४ वीं शती का अन्तिम चरण है । ये वैयाकरण, तार्किक तथा कवि एक साथ तीनों थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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