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नेमिदूतम्
की अपनी शिवभक्ति रूपी प्रेयसी को सन्देश भेजने के लिए अपने 'मानसहंस'
को दूत बनाकर भेजने की कथा वर्णित है कृति 'हंस सन्देश' की हस्तलिखित प्रति लाइब्र ेरी', मद्रास में सुरक्षित है ।
और किसी अज्ञात कवि की एक गवर्नमेण्ट ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट
हृदयदूतम्
कवि 'हरिहर' रचित इस दूतकाव्य में नायिका द्वारा अपने हृदय को दूत बनाकर अपना सन्देश नायक तक पहुँचाने की कथा वर्णित है । साथ ही यह कृति प्रकाशित भी है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जैनेतर संस्कृत दूतकाव्यों या सन्देशकाव्यों की इस लम्बी शृङ्खला में अधिकांश कृतियों का निबन्धन शृङ्गार के द्वितीय भेद, अर्थात् विप्रलम्भ शृङ्गार में किया गया है ।
जैन- दूतकाव्य
जिस प्रकार जैनेतर संस्कृत दूतकाव्यों की एक लम्बी शृङ्खला है; उसी प्रकार जैनदूतकाव्यों की भी एक शृङ्खला है, जो दूतकाव्यों या सन्देशकाव्यों की शृङ्खला को जोड़ने के साथ-साथ दूतकाव्यों या सन्देशकाव्यों की समृद्धि करता है । 'भवभूति" के बाद एक शताब्दी के भीतर ही हम जैन कवियों को 'कालिदास' रचित 'मेघदूत' के प्रति विशेषतः आकृष्ट होते पाते हैं । उन्हें यह काव्य इतना रुचिकर प्रतीत हुआ कि उन्होंने इसके समस्त पद्यों की समस्यापूर्ति कर नवीन काव्यों की रचना की। इनमें से कई कवियों ने 'मेघदूत' के अन्तिम चरणों को ही समस्या-रूप में ग्रहण कर उसकी पूर्ति अपनी ओर से की है, परन्तु आचार्य 'जिनसेन' का कार्य इस दृष्टि से नितान्त श्लाघ्य है, जिन्होंने मेघदूत के समस्त पद्यों के समग्र चरणों की पूर्ति की । जैन दूतकाव्यों का अकारादि वर्णक्रमानुसार संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
इन्दुक्तम्
'श्री विनय विजयमणि' ( १८ वीं शती का पूर्वार्द्ध ) रचित 'इन्दुदूत' में १३१ पद्य हैं, जो मन्दाक्रान्ता छन्द में है । वर्ण्य विषय इस प्रकार है
विजयमणि जोधपुर में चातुर्मास्य कर रहे हैं तथा उनके गुरु 'विजयप्रभसूरि' सूरत में । चातुर्मास्य के अन्त में पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा को १. संस्कृत साहित्य का इतिहास, बलदेव उपाध्याय, पृ० ३२६ ।
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