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नेमिदूतम्
वातदूतम् ( १८ वीं शताब्दी)
__ मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध १०० पद्यों वाले 'वातद्त' का प्रतिपाद्य विषय रावण से अपहृत अशोक वाटिका-स्थित सीता द्वारा वायु को दूत बनाकर अपना सन्देश राम के पास पहुँचाना, है। इसके रचयिता कवि 'कृष्ण नाथ न्याय पञ्चानन' हैं तथा इसका प्रकाशन सन् १८८६ में कलकत्ता से हो चुका है। वायुदूतम्
इस काव्य का उल्लेख 'प्रो. मिराशी' ने अपनी पुस्तक 'कालिदास' (पृ० २५८ ) में किया है, किन्तु काव्य के साथ-साथ इसके कर्ता आदि का नाम भी अद्यावधि अज्ञान का विषय बना हुआ है। विटदूतम्
यद्यपि इसके कर्ता का नाम सम्प्रति अज्ञात है, किन्तु इसकी हस्तलिखित प्रति 'आर्ष पुस्तकालय' विशाखापट्टनम् में सुरक्षित है । विप्रसन्देश
कृष्ण-कथा पर आधारित महामहोपाध्याय 'श्री लक्ष्मणसूरि' रचित 'विप्रसन्देश' में रुक्मिणी द्वारा एक विप्र = ब्राह्मण के माध्यम से अपनी विरह-दशा को कृष्णं तक पहुँचाने की कथा वणित है। इस सन्देश काव्य का प्रकाशन तंजौर से सन् १९०६ में हुआ था। इसके अतिरिक्त 'कृष्णमाचारि' लिखित 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' ( पृ० २५८) के अनुसार क्रैगनोर निवासी 'कोचुन्नि तंविरण' नामक कवि प्रणीत 'विप्रसन्देश' में सन्देश पहुँचाने के लिए विप्र = ब्राह्मण को सम्प्रेषित किया गया है । यह कृति अप्रकाशित है। श्येनदूतम्
'श्येनदूत' नामक अप्रकाशित इस दूतकाव्य के प्रणेता 'नारायण' कवि हैं । इस दूतकाव्य में दौत्यकर्म को श्येन-बाज पक्षी के द्वारा सम्पन्न कराया गया है। शिवदूतम्
कृष्णमाचारि' रचित 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' में उल्लिखित 'शिवदूत' काव्य के कर्ता 'नारायण' कवि ( तंजौर मण्डल के अन्तर्गत नटुकाबेरी निवासी ) हैं । यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि 'श्येनदूत' तथा 'शिवदूत' के कर्ता एक ही 'नारायण' कवि हैं अथवा दो भिन्न कवि ।
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