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________________ सूमिका vaca मेघप्रतिसन्देश दाक्षिणात्य afa मन्दिकल शास्त्री' ( १९२३ ई० ) रचित ६८ एवं ९६ पद्यों वाले दो सर्गों में विभक्त 'मेघप्रतिसन्देश' का वर्ण्य विषय, एक विरही यक्ष द्वारा मेघ को सन्देश वाहक बनाकर अलकापुरी में अपनी प्रिया यक्षिणी के पास भेजना तथा प्रिय-पीड़ा को सुनकर अत्यन्त व्यथित हृदय वाली यक्षिणी द्वारा उसी मेघ के माध्यम से उसे अपना सन्देश हस्त-संकेत से समझाकर यक्ष के पास भेजना है । ૨૦ यक्ष मिलन काव्य ( प्रकाशन वर्ष १६३० मद्रास ) महामहोपाध्याय श्री ' परमेश्वर झा' रचित ३५ पद्यों वाले इस काव्य में, जो 'कालिदास' के 'मेघदूत' पर ही लिखा गया है, देवोत्थान एकादशी के बाद यक्ष-यक्षिणी का मिलन एवं यक्ष-यक्षिणी की प्रणय-लीला इस काव्य का प्रतिपाद्य विषय है । यद्यपि 'कालिदास' कृत 'मेघदूत' से इसकी कथावस्तु सम्बद्ध है, फिर भी इस काव्य में ऐसा कुछ उपलब्ध नहीं होता, जिससे इसे दूत काव्य की श्रेणी में रखा जा सके । रथाङ्गदूतम् 'श्री लक्ष्मीनारायण' लिखित यह काव्य, जो मैसूर से प्रकाशित है, प्रतिपाद्य विषय का ज्ञान मुझे नहीं है । बकदूतम् Jain Education International महामहोपाध्य 'अजीतनाथ न्यायरत्न' रचित २५० पद्यों वाले 'बकदूत' जिसकी मूल प्रति लेखक के पुत्र श्री शैलेन्द्रनाथ भट्टाचार्य' के पास सुरक्षित है— की कथावस्तु इतनी अधिक अव्यवस्थित है कि यही ज्ञान नहीं हो पाता कि दूत बनाकर किसे किसके समीप भेजा गया है । इतना ही नहीं इस अव्यवस्थित काव्य के बाद के ५० पद्य तो ऐसे हैं जिनका सम्बन्ध इस काव्य से है ही नहीं । साथ ही इस काव्य को किसी भी दृष्टि से उत्कृष्ट नहीं कहा जा सकता । वाङ्मण्डनगुणदूतम् सन् १९४१ में कलकत्ता से प्रकाशित 'श्रीवीरेश्वर' प्रणीत इस काव्य में कवि अपने सूक्त-गुण को दूत बनाकर राजा का आश्रय पाने के लिए राजा के पास भेजता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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