SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६ ] नेमिदूतम् इस दूतकाव्य की सबसे बड़ी विशेषता है कि जिस देश - काल-परिस्थिति में यह लिखा गया तदनुरूप अत्याधुनिक शब्दों का भी समावेश इस काव्य में किया गया है । उदाहरणार्थ - वह विरही छात्र अपने मित्र से यथाशीघ्र अपनी प्रिया के पास जाने का निवेदन करते हुए कहता है कि वहाँ जाने में तुम्हे विलम्ब न हो इसलिए वायुयान से ही तुम्हारा जाना अच्छा होगा - स्थित्वा जम्मूनगरनिकटे वायुयानं त्वदीयम् । एरोड्रामे कतिपयपलान् तद् विरम्यैव गच्छेत् ॥ ६३ ॥ किन्तु यथाशीघ्र वहाँ जाने का यह अर्थ नहीं कि भूखे-प्यासे ही वहाँ जाना है, अपितु रास्ते में - चायं सोमं यदि वद सखे ! आहरिष्यामि तूर्णम् । आनेया वा बहुरुचिकरा चोषितुं तेऽस्ति टौफी ॥ ३३ ॥ मुद्गरदूतम् 'राम कुमार आचार्य' लिखित 'संस्कृत के सन्देश काव्य' (परिशिष्ट २ ) के अनुसार व्यङ्ग्यपूर्णं ‘मुद्गरदूत' 'पं० रामगोपाल शास्त्री' की कृति है । समाज में फैले भ्रष्टाचार को ठोंक - ठोंककर ठीक कर देने के लिए कवि द्वारा गदा को इस काव्य में सन्देश दिया गया है । मेघदूतम् 'मेघदूत' नामक तीन दूतकाव्यों में से महाकवि कालिदास' रचित 'मेघदूत' की प्रसिद्धि इतनी अधिक एवम् उस पर इतना अधिक कार्य विद्वानों द्वारा हो चुका है कि उसके सम्बन्ध में कुछ भी कहना शेष रह ही नहीं गया 'है । शेष दो 'मेघदूत' नामक काव्य में से 'विक्रम' कवि लिखित 'मेघदूत' का नामोल्लेख 'जैन ग्रन्थमाला' के श्वेताम्बर कॉन्फ्रेन्स पत्रिका ( पृ० ३३२ ) में तथा 'लक्ष्मण सिंह' रचित 'मेघदूत' का नामोल्लेख जैन सिद्धान्त (भाग ३, किरण १, पृ० १८ ) में हुआ है । ग्रन्थ अनुपलब्ध होने से प्रतिपाद्य विषय अज्ञात है । मेघवौत्यस ' त्रैलोक्यमोहन' की इस ( अप्रकाशित ) कृति का प्रतिपाद्य विषय 'कालिदास ' के 'मेघदूत' के अनुसार ही है; जिसमें प्रिया विरह से व्याकुल एक यक्ष द्वारा अपना सन्देश अपनी प्रिया तक पहुँचाने के लिए मेघ को दूत बनाया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy