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________________ भूमिका । २१ पावषदूतम् 'गोपेन्द्र नाथ स्वामी' रचित इस काव्य में कुल ३४ पद्य हैं जिसमें, विष्णुप्रिया नाम्नी एक ऐसी नायिका, जो अपने प्रिय के पास अपना सन्देश पहुँचाने के लिए दौत्य-कार्य सम्पादित करने हेतु अपने आङ्गन स्थित एक नीम वृक्ष को अपना सन्देश सुनाती है, वर्णित है । पान्थदूतम् सन् १९४९ में प्राच्य वाणी पत्रिका, कलकत्ता, भाग ६ में मूल मात्र प्रकाशित इस काव्य के रचयिता कवि भोलानाथ हैं। कुल १०५ पद्यों के द्वारा इसमें एक ऐसी गोपबाला की विरह-पीड़ा का वर्णन किया गया है, जो यमुना तट पर कृष्ण को न देख मूच्छित हो जाती है तथा मूर्छा समाप्त होने के बाद मथुरा जाते हुए एक पान्थ ( पथिक ) को देख उसे ही अपना सन्देशवाहक बनाकर कृष्ण के पास भेजती है। पिकदूतम् ___'ढाका विश्वविद्यालय' से प्राप्त ३१ पद्यों वाले इस काव्य की एक प्रतिलिपि, के आधार पर इसके रचयिता 'श्री रुद्रन्याय पञ्चानन' हैं। साथ ही प्राच्य वाणी पत्रिका, कलकत्ता के द्वितीय भाग में 'श्री अनन्त लाल ठाकुर' द्वारा सन् १९४५ में यह दूतकाव्य प्रकाशित भी हो चुका है । इस काव्य में कृष्ण-विरह-पीडिता राधा पिक ( कोयल ) को दूत बनाकर कृष्ण के पास अपना सन्देश भेजती है । पिकदूतम् ___ 'प्राच्य वाणी मन्दिर', कलकत्ता ( कुछ अंश हस्तलिखित रूप ) में उपलब्ध इस दूतकाव्य के प्रणेता कवि 'अम्बिकाचरणदेव शर्मा' हैं । उपलब्ध अंश से विदित होता है कि इस काव्य में किसी गोप कन्या, जो कृष्ण-विरह-पीडिता थी, वह अपनी विरह-व्यथा पिक के माध्यम से कृष्ण तक पहुँचाना चाहती है, की विरह-व्यथा वर्णित है। पिकदूतम् इस दूत-काव्य के प्रणेता का नाम अद्यावधि अज्ञात है; किन्तु इसकी पाण्डुलिपि 'श्री चिन्ताहरण चक्रवर्ती'; कलकत्ता के व्यक्तिगत पुस्तकालय में सुरक्षित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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