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पद्मदूतम्
सिद्धनाथ विद्यावागीशकृत इस काव्य का वर्ण्य विषय, श्रीराम का पुल बनाने के निमित्त सागर तट पर पहुँचने के समाचार को जानकर लंका में अशोक वाटिका स्थित सीता की मिलनोत्कण्ठा का तीव्र हो जाना, किन्तु दूर देश स्थित होने के कारण तत्काल सम्भव नहीं होने से उसी समय सागर में बह रहे एक कमल पुष्प को दूत बनाकर अपना सन्देश श्रीराम तक पहुँचाना है ।
नेमिदूतम्
पदाङ्गदूतम्
कुल ४६ पद्यों में निबद्ध ( ४५ पद्य मन्दाक्रान्ता छन्द तथा ४६ वाँ पद्य शार्दूलविक्रीडित छन्द) यह कृति बङ्गकवि महामहोपाध्याय कृष्ण सार्वभौम की है । साहित्य, भक्ति तथा दर्शन रूपी त्रिविध धाराओं की संगम वाली इस कृति का वर्ण्य विषय कृष्ण-विरह- पीडिता यमुना तट पर आयी हुई उस एक गोपी की विरह गाथा है, जो अपना सन्देश रथ, घोड़े आदि के पदचिह्नों के माध्यम से कृष्ण तक पहुंचाना चाहती है । इसकी कथावस्तु श्रीमद्भागवत की कथा से सम्बद्ध है । इस काव्य का रचना काल शक संवत् १६४५ है ।
पवादूतम्
'इण्डिया ऑफिस लाइब्र ेरी, ( भाग ७, पर इस काव्य के प्रणेता कवि भोलानाथ हैं । से इस काव्य का वर्ण्य विषय अज्ञात है ।
ग्रन्थाङ्क १४६७ ) के आधार सूची - पत्रों में ही अनूदित होने
पवनदूतम्
वाली इस कृति का वर्ण्य विषय थी वहां ) की कुलवयती नाम्नी राजा लक्ष्मण सेन पर अनुरक्त
विप्रलम्भ शृङ्गार प्रधान १०० पद्यों है - कनक नामक नगरी ( जो गन्धर्वों की नगरी गन्धर्व युवती विजय यात्रा पर निकले हुए हो जाती है । वहाँ से राजा के लौट आने के बाद विरह - पीडिता वह गन्धर्व युवती अपना सन्देश वसन्त ऋतु में दक्षिण दिशा में बहने वाली वायु को दूत बनाकर राजा लक्ष्मण सेन के पास भेजती है । यह कृति कवि 'धोयी' की है ।
पवनदूतम्
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कृष्णमाचारि रचित 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' में इस काव्य को जी० बी पद्मनाभ की कृति कहा गया है ।
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